
प्यारी सखी ललिता
स–ुमधुर याद
हम अइठाम जेना–तेना जीनगी काइट रहल छियौ । तों निके सुखे हेबे से विश्वास छै ।
गै हम त एखन अप्पन सौसरामे नारकीय जीवन बितारहल छियौ । कतेक पीडा आ गञ्जन सैह रहल छियौ ओ सभटा बात पत्रमे लिखनाइँ त सम्भव नहि छै । तैयो आइ अपन दिलके कुछ बात चिट्ठीके माध्यमसँ लिख रहल छियौ । हमर बाबुजीके आर्थिक अवस्था आऽ लाचारीपनाके विषयमे तोरा त बुझले छौ । कतेक दुःख काइटके, कतय कतय जा’ कए दहेजक टका प्रबन्ध कएने छलै ।
हम त बाबुजीके कहैत रहियै कमसे कम हमरा बारहो किलास धैर पढ’ दीय ।’ ओ सभ हमर बात मानै ल’ तैयार नइँ भेलै । कहलक जे लडका ओभरसियरी कइरके प्राइभेटमे काज कैर रहल छै आ देखैयोमे बड्ड सुन्दर छै, एहेन निक मौका किया छोडब ? पाँच लाख टका, दुई भैर सोना आ पल्सर मोटरसाइकिलके माग भेल छलै ।
दहेजके फरमाइस पूर्ती करै खातिर बाबुजी पाँच कट्ठा गोँडहा खेत बेच देलकै । खौब धुमधामसऽ बियाह भेलै । ओना त हम ततेक नइँ बुझैत रहियै । बियाहके बात सुइनके हम सेहो खुशीये छलियै । तैं बाबु–मायक बातके प्रतिवाद नइँ कइर सकलियै ।
दहेजमे माग भेल टका आ सब सामान पुरा कइर देलकै । मातरे मोटरसाइकिल बादमे देब से बाबुजी गछने छलै । बिआहक किछु महिना धइर त हमरा सौसरामे बड्ड मलार दुलार भेलै । साउस ससुर सेहो बहुत मानै छलै । हमरा त एना बुझाइ छलै जे हम स्वर्गेमे आइब गेल छी । कनियो माय बाबुजीके कमी नइँ बुझाइ छलै । घरवाला सेहो जान सऽ बइढके मानै छलै । ओकर प्रेममे सब कुछ बिसैर गेल रहियै । ओ हमरा एतेक खुशी दै छेलै से बात नै पुछ । गै, की कहियौ ? ओ खुशीक क्षण बेसी दिन नइँ टिक सकलौ । अखनी त हमरा एना बुझाइछै जे हम कोन नरकमे चइल आएल छियै । कोन जनमके पाप कएने रहियै से नइँ जाइन । जे हमरा एहेन दुःख सहए पइर रहल छै ।
बिआहके तीन चाइर महिना बाद हमर खुशीके संसारमे अगडाही लाइग गेलौ । एकर एक्केटा कारण छेलै दहेजमे गछलाहा मोटरसाइकिल । जकर कारण हम अखनी साउस, ससुर आऽ घरवालाके नजैरमे रस्तापेडाके पथल बैन गेल छियौ । कोनौस’ गञ्जन आ लतखुर्दन झेल रहल छियौ ।
नैहरास मोटरसाइकिल खातिर मानसिक पीडा दैत रहल । नइँ सैह सकलियौ त बाबुमायके सभटा बात कहलियै । घरोक हालत तेहने, उपरस’ बेमार माय । हमर दुःख दरद सुइनके बाबुजी बोमी पाइरके कानए लागलै । हमरो नहि रहल गेलै । घारमे घार जोइडके खौब कानलियै ।
नोर पोछैत बाबजी बाजल ‘साबित्री, तोहर बिआहमे गोँडहा खेत बेचलियौ । पाँच कट्ठा डिह मध्ये दू कट्ठा मायक ईलाजमे बिकाय गेलौ । एखनीयों मायके अवस्था ओहने छौ, बौआ दिपुवा आ जानकीके पढाइके खरच तिरए परै छै । आरा मीलमे काज कैरके जेनातेना गुजारा चलाय रहल छियौ । समैध, सम्धीन आ मेजमानके कैह दिहै जे मातरे छ महिना रुइक जाय ल, एखनी बड्ड लाचारी छै ।
बाबुजीक दुःखडा सुइनके हम कुछ नइँ बाइज सकलियै । छाती बज्जर बनाके फेनो, सौसरा एलियै ।, नैहराके मजबुरी सुनेलियै । घरवाला आ सासु झोंटा पकैरके बड्ड पिटलकौ । हम सहैत रैह गेलियै, ओ सब देहपर लात मुक्का बरसावैत रैह गेलै । बाबुमायके अवस्था देखकए गञ्जन सहैत रहलियै । एक्कोबेर साउस, ससुर आ घरवाला निक बात नइँ कहैत छै । काइल्ह धैर जे घरबाला जान सऽ बैढकए मानैत छलै, आइ वैह घरबाला दहेजक कारण दुश्मन बैन गेल छै ।
हम एतेक खराप भ्या गेलियौ जे हमरे बाबुजीक देलहा पलङ्गपर ओ टाङ्ग पसाइरके सुतै छै आ हम गोनैर पर भोटिया–चोटिया बिछाकए दिन काटै छियै । एतबे नहि, कखनोकाल हमर घरवाला हमरासँ बातो कइर लैछै त मोनके घुमाय दै छै हमर साउस । घरवालासँ माइर खुवाबैत रहै छै । एखनीतक सहैत रहलियै ।
गै ललिता, एतबे कहाँ ? सासु हमर घरवालाके सिखा पढाकए तुल कैर देने छै । दोसर बियाह करै ला सेहो कैह रहल छै । बेर–बेर हमरा घरस निकालएके प्रयास कएल जाय रहल छै । एकबेर त हमर साउस सुतल अवस्थामे बिछाओनमे मट्टितेल छिटकए आइग लगा देने रहै । हम निनमे रहियै, देहमे आगि लागल छलै । देह झरैक गेल छलै । एक सप्ताह अस्पतालमे भर्ना रहलियै ।
‘हमर पुतौह देहमे मटिया तेल ढाइर आइग लगाकए आत्महत्या करैत छलै’ से कैहकए हमर सासु लोग सभके पतियावैत छै । घरके बात छियै केकरा कहबै, लोग की कहतै ? से सोइचके चुप रैह गेलियै ।
ई घटनाके बाद हमर देह झामर भऽ गेल छै । घरबाला सेहो आओर गलत नजैसऽ देखए लागल छै । कि करी आ नै करी, किछु नहि फुराइ छै । बाबुमायके अपन बेदना सुनाकए आओर बोझ बनए नइँ चाहैत छियै ।
कि करियौ ? जिनगी बोझ बुझाय रहल छै । कखनोकाल ईहो मोन होइत रहैय’ जे जिनगी समाप्त कइर ली । जीनगीस’ हार माननाइँ ठिक नइँ हेतै । कियाक त हम मनुख छी । जाधरि जीबै ताधैर संघर्ष करबै ।
समाजके लोग केहेन निर्दयी छै से तोरा बुझले छौ । दहेजेके कारणसऽ कतेको महिलाके आइग लगाकए जराएल गेल छै । हँसी–खुशी सऽ जीनगी जिबएके लालसा होेइतो अकालमे बिभिन्न बहानामे मारल जा’ रहल छै ।
गायमहिस जँका लडकाक खरिद बिक्री खुलेआम भ’ रहल छै । जे लडका जतेक पढहल ततेक दाम । गै, कहियाधैर लडका सब बिकाइत रहतै ? समाजमे दहेजेक कारण कतेको बेटीसभके बिआह नइँ भ पाइब रहल छै । कानून त बनल छै । कारवाही करैबाला पुलिस आ खबरदारी करैबाला समाज चुप्पी साधने छै । सबकोइ पुरुषके गाइर पढैत रहैत छी, हम त महिले अर्थात अपने साउसस’ पीडित छियौ । कियाक त दहेजक बात साउसे करैत रहैत छै ।
ललिता, पीडा असहय भेलाक बाद आइ मोनक बात चिट्ठीक माध्यमस लिखए लेल बाध्य भ’ गेलियौ । गै तुँ त हमर सखी छी ने । तैं तोरालग एकटा प्रस्ताव राइख रहल छियौ । हमरा विश्वास छै जे तों पूरा करबेटा करबिही । हमरा पता चलल जे तोरो घरवाला दहेजेक कारणसऽ तोरा छोइड देने छौ । मजदुरी कइरकए गुजारा चलाय रहल छे । अति भ गेलै । कुछ करए परतौ ।
हम तुँ जे दुःख झेल रहल छे एकर मूल जैर समाप्त करै खातिर अभियान चलाबए पडतौ । एहेन नारकीय जीवनस’ मुक्ति पाबै खातिर अन्तराष्ट्रिय नारी दिवस अर्थात आठ मार्चके दिन अभियानमे निकलैके सङ्कल्प कैर लेने छियौ ।
नइँ चाही एहन मानवता बिरोधी क्रियाकलाप । जा’धैर जीयब सामाजिक बिकृति विरुद्धक अभियानमे जुटब । दुलहा खरिद बिक्री करएवाला आ दहेजके लोभीपापी सबके मेटायके रहब । गै ललिता, एहन नारकीय जीनगी जी के कि करबे ? तैं आब देरी नइँ कर जुइट जो अभियानमे । हँ, एकटा बात याद राखिहे नारी दिवसके दिन गामक पुरनी पोखैरपर ठिक पाँच बजे भिनसरे चइल आबिहे । हम ओहिठाम बाट ताकैत रहबौ । गै घरस आबएकाल कुछो नइँ लिहे । एक सेट कपडा मातरे लिहे ।
ललिता, चिठी सेहो नम्हर भ्या गेलै । भेटियेके आओर बात क्रममे आओर करबौ । ले त एकरे निस्तुकी माइन लिहे । सप्पत हमर, तों ठिक समयमे एबेटा करिहे । हम बाट तकैत रहबौ । आइके लेल एतबे ।
तोहर बचनके सखी
साबित्री