
प्रा. अमरकान्त झा
मिथिला आ नेपालबीच सम्बन्धक विषयमे विचार राखएसँ पूर्व ई दूनू देशक संक्षिप्त इतिहास सामने राखब आवश्यक होएत । करीव तीन हजार ई. पूर्व अयोध्याक संस्थापक राजा इक्ष्वाकुक बालक निमि गण्डकी क्षेत्र आबि एकटा अलग स्वतन्त्र जनकवंशी मिथिला राज्यक स्थापना कएलैथि । निमिक सन्तान मिथिद्वारा सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाओल एहि राज्यकें विदेह आ तिरहुत सेहो कहल जाइत अछि । करीव अढ़ाइ हजार वर्षतक चलल जनकवंशी शासनमे ९४ टा राजा भेलाह जाहिमे बाइसम राजा सिरध्वज सीताक पिता छलाह । जनकवंशी क्षेत्रिय राजालोकनिक विद्वत् सभामे याज्ञवल्क्य, गौतम, कपिल, अष्टावव्रm, आदि अनेकौं दार्शनिक, ब्रह्मज्ञानी एवं धर्मशास्त्री लोकनिक संगहि मैत्रेयी, गार्गी, सनक, विदुषीलोकनिद्वारा आध्यात्मिक विषयसबहक सम्बन्धमे निरन्तर चिन्तन-मनन एवं सत्य-धर्मक अन्वेषण आ निरुपण होइत छल ।
भारतीय दर्शनक मूख्य छः परम्परागत शाखासबमेसँ चारि शाखाक संस्थापक दार्शनिकलोकनि मिथिलेक रहल छथि । शुरुक जनकवंशी राजालोकनि वीर एवम् पराव्रmमीएटा नहि, वल्कि ओसभ स्वयं महान दार्शनिक, सन्त एवं आध्यात्मिक चिन्तको छलाह । ताहि समयमे मिथिलाक सर्वसाधारण निम्न जातिक जनसमुदायोसबमे उच्चस्तरीय बौद्धिकता रहैत छल । किन्तु एकटा आदर्श राज्यक रुपमे स्थापित मिथिलाक गौरवकेँ एकर उत्तरकालीन जनकवंशी राजालोकनि अक्षुण्ण नहि राखि सकलाह । उत्तराद्र्धक राजालोकनि प्रजाक कल्याण एवं विद्वानसबहक सम्मान करब छोडि़ अपन विलासितामे डुबल रहबाक कारण जनकवंशी शासनक पतन भए गेल । ६-७ ई. पूर्व राजा कराल व्यभिचारी हेबाक कारण जनव्रmान्तिमे हुनक हत्या भेल । ताहि संगहि, जनकवंशी शासनो समाप्त भेल आ आर्यावर्तअन्तर्गत मिथिलेमे प्रथमतः गणतंत्रक स्थापना भेल । एकर तुरन्तवाद मिथिला बज्जी महासंघक स्वशासित राज्यमे रुपान्तरित भेल । एहि तरहें, आर्यावर्तमे मिथिला संघीयतोमे सबसँ पहिले प्रवेश कएल राज्य अछि ।
बज्जीमहासंघक पतनक बाद करीव डेढ़ हजार वर्षधरि मिथिला अजातशत्रु, मौर्य, गुप्त, हर्षवद्र्धन, पाल, आदि वाह्यशक्तिक नियन्त्रणमे रहल । १०९७ ई. मे कणर्ाटवंशी नान्यदेवद्वारा पुनः स्वतंत्र, समृद्ध मिथिलाराज्य स्थापित भेल । २२७ वर्षधरि सञ्चालित कणर्ाटवंशी शासन मिथिलाक आर्थिक, सामाजिक एवं साँस्कृतिक विकासक दृष्टिसँ स्वणर्िम युग मानल गेल अछि । १३२४ ई. मे गयासुद्दीन तुगलक आव्रmमणसँ कणर्ाटवंशी शासन समाप्त भेल एवं मिथिलाक राजधानी हाल बारा जिलाअन्तर्गत सिमरौनगढ ध्वस्त भेलाक बाद मिथिलाक प्रशासन दरभंगासँ संचालित भेल । एकर उत्तरी क्षेत्रमे राजनैतिक शून्यताक कारण एतए माण्डलिक राज्यसब काएम भेल जकरा सोलहम शताब्दीमे सेनवंशी राजालोकिन अधीनस्थ केलैन्हि । पृथ्वीनारायण शाहद्वारा व्रmमशः १७६८ ई. आ १७७४ ई. मे सेनवंशी मकवानपुर आ चौदण्डीपर आधिपत्य काएम भेलाक बाद उत्तरी मिथिला गोरखा राज्यक अंग बनल एवं विखण्डित मिथिलाक दक्षिणी विशाल भाग विहार (भारत) अन्तर्गत रहल ।
नेपालक इतिहासक सन्दर्भमे करीव अढ़ाइ हजार ई. पूर्व गाय पालएबला गोपालवंशी यादवलोकनिक काठमाण्डू आगमनक चर्च कएनाइ आवश्यक अछि । ई ग्वालालोकनिमेसँ नेप नामक ग्वालाद्वारा पशुपतिनाथक मूर्ति भेटल जकर ज्योतिर्लिङ्गक तीव्र ज्योतिसँ ओ ग्वाला भष्म भए गेलाह । किम्वदन्ति अनुसार हुनके नाम पर उपत्यकाक नाम नेपाल पड़ल एवं हुनक वालक भूमिगुप्त नेपालक प्रथम राजा बनाओल गेलाह । करीव पाँच सय वर्षसँ वेशी शासन चललाक बाद गोपालवंश उत्तराधिकारी विहिन भय गेलाक कारण एकर स्थान पर सिमरौनगढ आ जनकपुरबीचक क्षेत्रसँ उपत्यका प्रवेश कएल सजातिय महिषपाल वंश करीव डेढ़ सय वर्षधरि शासन कएलक । तत्पश्चात् पूर्वीय पहाड़सँ उपत्यका आएल किराँतसब राज्य सञ्चालन कएलक । करीव डेढ़ हजार वर्षधरि किराँतवंशी शासनक बाद तेसर शताब्दी ई. पूर्व मगध साम्राज्यक विस्तारक कारण बज्जी महासंघ समाप्त भेलाक बाद लिच्छवीसब वैशाली (हाल मुजफ्फरपुर, विहार) सँ विस्थापित भए उपत्यका आएल आ किराँत शासनकेँ समाप्त कए अपन शासन काएम कएलक । करीव डेढ़ हजार वर्षधरि अर्थात ई. १२०० धरि लिच्छवीवंशक शासनक बाद छ सय वर्षधरि उपत्यकामे मल्ल शासन रहल । पृथ्वीनारायण शाहद्वारा १७६८ ई. मे उपत्यकापर पूणर् आधिपत्य काएम भेलाक बाद
एकीकरण अभियान अन्तर्गत तराइ-हिमालसहित बिजित सम्पूणर् भूभागक नाम “नेपाल” कहल गेल ।
करीव २४० वर्षक शाहवंशी शासनमे १०४ वर्षधरि वास्तविक शासक राणासब छल एवं ताहुसँ पहिले वहुतो राजालोकनि नावालिग रहबाक कारण वा अन्य कारणसँ वास्तविक शासक अन्य दरवारीलोकनि छलाह । विगत छ दशकक एहि काल खण्डमे नेपाली जनता लोकतंत्र प्राप्तिक लेल तीन बेर सफल आन्दोलन कएलक । २००७ क व्रmान्ति आ २०४६ क जनआन्दोलन (प्रथम) मे प्राप्त लोकतंत्रक हत्या तत्कालिन राजालोकनि व्रmमशः महेन्द्र आ ज्ञानेन्द्रद्वारा कएलाक उप्रान्त २०६२-०६३ क आन्दोलन (दोसर) मे अन्ततः राजतंत्रे समाप्त भए गेल । २०६४ सालमे नेपाली जनता संघीय गणतंत्रात्मक लोकतांत्रिक संविधान निर्माणक हेतु संविधान सभाक निर्वाचन करएमे सफलो भेल । किन्तु राजनैतिक दलसबबीच, खास कए, संघीयताक सम्बन्धमे वैचारिक मतभिन्नताक कारण अग्रगामी संविधान निर्माण विना २०६९ जेष्ठ १४ गतेक मध्य रातिमे संविधान सभाक त्रासदीपूणर् ढंगसँ अवसान भेलासँ समग्र नेपाल राष्ट्र संकटक महादलदलमे फसल अछि ।
एहि ऐतिहासिक पृष्ठभूमिमे मिथिला आ नेपालबीच सम्बन्ध तीन काल खण्डमे बुझल जा सकैत अछि ः- (क) प्राचीन ः वर्तमान नेपालक भौगोलिक बनौटमे दक्षिणसँ १७ प्रतिशतमे रहल तराइकेँ छोडि़ बाँकी सम्पूणर् उत्तरी क्षेत्र हिमालय पर्वत श्रृंखलाक भूभाग अछि । हिमालय आर्य ऋषि-मूनिक तपोभूमि रहल छल । आर्यलोनिक लेल हिमालय धार्मिक एवं साँस्कृतिक महत्व राखैत अछि । तहिना, मिथिला आर्य सभ्यताक के केन्द्रस्थल एवं ज्ञान-केन्द्र रहल छल । एहि काल खण्डमे मिथिला क्षेत्रक महिषपालवंशी यादव लोकनिक शासनो नेपालमे चलल अछि । तहिना, नेपालमे लिच्छवीलोकनिक शासनसँ पहिले बज्जी महासंघक सशक्त एकाइक रुपमे मिथिला आ लिच्छवी संलग्न हेवाक कारण ई दूनूबीच ऐतिहासिक निकटतो रहल छल । एहि सब कारणे, मिथिला आ नेपालबीच प्राचीन समयमे घनिष्ट धार्मिक, साँस्कृतिक एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध रहल छलैक ।
(ख)मध्यकालीन ः एहि कालखण्डमे मिथिला नेपालपर कमसँ कम छ बेर आव्रmमण एवम् लूटपाट कएलक से प्रमाण भेटैत अछि । एहि कारणे, काठमाण्डूबासी मिथिलाबासीकेँ हेय दृष्टिसँ “डोय” शब्दसँ सम्वोधन करैत छल । वहुतो आव्रmमणक कारण स्वयं मल्ल शासनक आन्तरिक द्वन्द्वात्मक परिस्थिति छल जाहिमे मिथिलाक राजालोकनिकेँ आव्रmमणोक हेतु आह्वान कएल जाइत छल । ताहि समयमे नेपालक राजधानी भक्तपुर छल एवं अन्तिम मिथिला आव्रmमणक समय नामक राजा जे कियो होइथि वास्तविक शासक तुंग मल्ल आ हुनक सन्तान छल । सन् १३११ क अन्तिम मिथिला आव्रmमणमे तुंग मल्ल मिथिलासँग सन्धी-सम्झौता करा अपन कन्या देवलदेवीकेँ मिथिलाक राजा हरिसिंह देवसंग विआहो करोलैन्हि । फलस्वरुप, ई दूनू राष्ट्रबीच सिर्फ शान्ति तथा मैत्रिपूणर् सम्बन्धेटा नहि काएम भेलैक वल्कि रक्त सम्बन्धोक शुरुवात भेल एवं मिथिलाकेँ गर्व साथ देखक नेपालक दृष्टिओमे सकारात्मक परिवर्तन आएल ।
मिथिलापर गयासुद्दीन तुगलक आव्रmमणपश्चात् पराजीत राजा हरिसिंहदेव अपन पत्नी देवलदेवी, पुत्र जगत सिंह, मंत्रीगण एवं विद्वानलोकनिसहित नेपालमे शरण लेवाक व्रmममे तीनपाटनमे हुनक निधन भेलोक बाद सुुरक्षित देवलदेवी आ जगतसिंह भक्तपुर दरबारमे आश्रय पौलैन्हि । नेपालक शासक रुद्ध मल्लक ३० वर्षक अल्पआयुमे निधन भेलाक वाद हुनक छोट बहिन देवलदेवी करीव चारि दशकधरि नेपालमे शासन केलैन्हि । एहि कालखण्डमे मैथिली भाषा, साहित्य आ मैथिल कला एवम् संस्कृतिकेँ नेपालमे पूणर् संरक्षण भेटलैक ।
मैथिली मल्ल शासनक राजकाजक भाषा बनल । मुलसमान आव्रmमणक त्राससँ युक्त मैथिल विद्वानलोकनिक लेल काठमाण्डू एकटा सुरक्षित आश्रय स्थल बनल । मैथिल विद्वान लोकनिक संगहि स्वयं मल्ल राजालोकनियोद्वारा मैथिलीमे उत्कृष्ट साहित्यिक रचनासब कएल गेल । ई दूनू राष्ट्रबीच साँस्कृतिक एवम् रक्त सम्बन्ध सुदृढ़ करएमे देवलदेवीक योगदान उल्लेख्य अछि । देवलदेवी भाइ रुद्धमल्लक एकेटा गद्यीक हकदार विधवा कन्या नायक देवीक विआह अपन पुत्र जगतसिंहसँग एवं ई दूनूक एकेटा संतान राजल्लदेवीकेँ “दक्षिणसँ” जयस्थिति मल्लकेँ आनवाक’ हुनक संग विआह करौलैन्हि । पाँछा जाकए जयस्थिति मल्ल मध्यकालीन नेपालक सबसँ सशक्त राजा साबित भेला जे अपनाकेँ कणर्ाटवंशी (मिथिला) कुलक मानैत छलाह । करीव तीन सय वर्षक बादो कान्तिपुरक राजा प्रताप मल्लक विआह महोत्तरीक राजा कीर्ति नारायणक पुत्री लालमतिसँ भेल तथ्यक प्रमाण भेटैत अछि । मल्ल शासनक सुरक्षा निकायोंमे सुदृढ तिरहुतिया सेनाक व्यवस्था छल । एहि तरहें, एहि कालखण्डमे मिथिला आ नेपालबीच अत्यन्त प्रगाढ़ राजनैतिक, साँस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, आदि बहुआयामिक सम्बन्ध रहल छल ।
(ग)आधुनिक ः पृथ्वीनाराष्यण शाहक एकीकरण अभियानक समयसँ अखनुका समयधरिक कालखण्डकेँ आधुनिक मानल जेबाक चाही । करीव २४० वर्षक एहि कालखण्डमे नेपालक सम्बन्ध एवम् सरोकार उत्तरी मिथिलासँग रहल छैक । एहि कालखण्डमे नेपाल अन्तर्गत रहल उत्तरी मिथिला भेदभावक शिकार बनल छैक । अन्य गैर-नेपाली भाषाभाषी समुदाय जकाँ मैथिल समुदायो भाषिक विभेदसँ उत्पीडि़त छैक, सत्तामे हिस्सेदारीसँ बञ्चित छैक, शिक्षा, सेना सहित सरकारी एवम् गैर-सरकारी सेवा, सुविधा, आदिसँ बहुत हदतक वहिष्कृत छैक । एहेनमे, नेपाल एवं एकर अधीनस्थ उत्तरी मिथिलाबीच सम्बन्ध मधुर नहि कहल जा सकैत अछि । बहुत हदतक उत्तरी मिथिलामे आन्तरिक उपनिवेशवादक स्थिति काएम छैक ।
एतबैक नहि, उत्तरी मिथिलाबासीक अपन पहचान नष्ट हेबाक गम्भीर खतरा उत्पन्न भेल छैक । उत्तरी मिथिलामे करीव ८० प्रतिशत मुसलमानसहित ४० जातिक मातृभाषा मैथिली छैक, ओसब मैथिल छथि, मिथिलाबासी छथि । किन्तु, शोषित, पीडि़त मैथिल सहित अन्य तराइवासीलोकनिकेँ काठमाण्डूक शासकलोकनि, खासकए, राणाकालसँ रहल शासकलोकनिद्वारा भ्रामक पहचान “मधेसी” कहि सम्वोधन कएल जाइत छैक । एहेन सम्वोधन दक्षिणी मिथिलाबासीकेँ नहि कएल जाइत छैक । आर्यावर्तक पाँच भागमे रहल मध्य भागकेँ मध्यदेश कहल जाइत छलै । जकर प्रमाणित सीमांकन दिल्लीसँ प्रयाग (इलाहावाद) धरि छलैक ।
एहि भौगोलिक सीमांकन अन्तर्गत मिथिला नहि पड़ैत छैक । एहेनमे उत्तरीमिथिलावासीकेँ मध्यदेशीक अपभ्रंस “मधेसी” सम्वोधन नहि कएल जा सकैत अछि । तहिना, मध्यदेशक सीमांकन सम्बन्धी एकटा भिन्न प्रस्ताव अनुसार दिल्लीसँ चम्पा (भागलपुर) धरिके भूभाग मध्यदेश अछि एवं ताहि अनुसार मिथिला सहित कंचनपुरसँ झापातकक भूभाग मध्यदेशमे पड़ैत छैक आ मिथिलाबासीयो मधेसी छथि, जनक, सीता, सलहेस, दीनाभद्री, आदि मिथिलाक विभूतिलोकनियों “मधेसी” छथि से सोचमे कोनो यथार्थता, सत्यता नहि छैक । काठमाण्डूक शासकलोकनिद्वारा “मधेसी” सम्वोधनसँ, खासकए, मैथिल समुदायक कोनो सम्मान नहि बढ़त, वल्कि तराइमे वर्तमान समयमे जे मधेसवादक लहर चलाओल गेल अछि ताहिसँ मैथिल समुदायक भाषिक, साँस्कृतिक शोषण निश्चित रुपमे अकल्पनीय ढंगसँ होएत । संघीय संरचना अन्तर्गत पहचानक आधारपर मिथिला राज्यक स्थापनाक माँग तत्कालीन संविधान सभा संग करैत जनकपुरमे २०६९ वैशाख १८ गते पाँच गोटे शहीद भेल स्थितिमे मैथिल समुदाय अपन जीवन्त पहचानकेँ लतियाबैत “मधेसी” भ्रामक पहचान पाछु लागल रहब कतेक उचित होएत ?
मिथिलाक समृद्ध संस्कृति एवम् इतिहासक संगहि मोरङ्गसँ सर्लाहीधरि ६३% सधन मैथिली भाषाभाषीक जनसांख्यिक स्थिति एवं एहि क्षेत्रक सामथ्र्यताकेँ ध्यानमे राखैत संघीय संरचना अन्तर्गत एतए मिथिला राज्यक स्थापना आवश्यक अछि । तखने जाकए, मैथिल समुदाय सत्तामे समुचित हिस्सेदारी बना सकताह एवं हुनकासबहक भाषा, साहित्य एवम् संस्कृतिकेँ उचित संरक्षण एवं विकास भए सकत । महाकवि विद्यापति आ हुनकासँ तीन-चारि दशक पहिले सिम्रौनगढ दरवारक महान गद्य शिल्पकार ज्योतीरिश्वर ठाकुरक अतुलनीय योगदानक चलते मध्यकालीन युगमे मैथिली भाषा उत्तरी भारत (आर्यावर्त) क सम्पूणर् आधुनिक भाषासबकेँ साहित्यिक नेतृत्व प्रदान कएलाक कारण मैथिली निर्विवाद रुपेण एकटा अत्यन्त सबल, संसाधनयुक्त भाषा अछि । एहि भाषाक सिर्फ प्रयोग शिक्षा, प्रशासनक प्रत्येक तह, संचार, आदि महत्वपूणर् क्षेत्रमे विस्तार कएल जाय तँ शिक्षा घर-घरमे पहुँचत, मैथिल समाज पूणर् शिक्षित भए सरकारी एवं गैरसरकारी सेवा अवसरसँ लाभ उठाओत एवं साहित्यिक श्रृजनशीलतों बढ़त । एहिसँ मैथिल समुदायमे आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन आबि सकत, संघीयतो सार्थक भए सकत एवं उत्तरी मिथिला आ नेपालबीच सम्बन्ध सुमधुर बनि देशमे लोकतंत्र एवं राष्ट्रीयतों सुदृढ होमएमे मद्दत करत ।
अन्तमे, प्राचीन एवं मध्यकालीन समयमे मिथिला आ नेपालवीच प्रगाढ़ सम्बन्ध होइतहुँ आधुनिक कालमे उत्तरी मिथिला आ नेपाल बीच सम्बन्ध असहज एवंं असमान रहल अछि । एकरा सुमधुर बनेबाक हेतु पूर्वीय तराइमे संघीयताक ठोस, वैज्ञानिक आधारसबकेँ ध्यानमे राखि मिथिला राज्य कायम होनाइ वान्छनीय अछि ।
(मैथिली सेवा समिति, विराटनगरद्वारा पुस १३-१४, २०६९ मे आयोजित समारोहमे प्रस्तुत कार्यपत्र पर आधारित ।)