
प्रा.रामरिझन यादव
प्रा.डा. शशिनाथ झा । हुनका संगे २०४० सालस’ मोरङ्ग आ २०५० के बाद स्नातकोत्तर क्याम्पसमे वनस्पतिशास्त्र पढेलौं । तैं हुनक आ हमर बीचमे बहुत समानता छै । मुदा, किछ भिन्नता अवश्य छै । जे शायदे मधेशमे मिलत । भिन्नतामे ओ हमर सबहक मिथिलान्चलके सोइत मैथिल बाभनमे परै छै । जे यादवस’ कैयो गुणा पढल लिखल आ साहित्य सिर्जना करैबाला जात छियै ।
मैथिलीमे त बहुतो साहित्यसिर्जना मैथिल बाभन कएने छै । ब्राम्णेत्तर मैथिली साहित्य सिर्जन एकदमे कम छै । दूनु जाइतमे जेनेरेसनके फरक छै । जतयधरि बौद्धिक अभ्यासके प्रश्न छै हम नब्बेके दशकमे नेपालीमे “वातावरण“ विषयके पहिल पुस्तक लिखलियै आ ओ अग्रेजीमे इकोलजी दिल्लीस’ प्रकाशित करेलियै ।
हम दर्जनो लेखरचना राष्ट्रीय पत्रपत्रिकामे लिखलियै । ओ राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय जर्नलमे प्रकाशित छै । ओ आधा दर्जन जतेक इकलोजी आ वनस्पतिशास्त्रके पाठ्यपुस्तक लिखने छै त हम मधेशमे केन्द्रित भ कए लगभग एक दर्जन जतेक जेनरल पुस्तकके लेखन/ सम्पादन कएने छी । मुदा, विज्ञानके विद्यार्थी आओर एक स्त्तरके वैज्ञानिक होइतो मातृभाषामे पुस्तक लेखन आ सम्पादन करएवाला सबके डिबिया क कए खोजब त बड्ड मुश्किलस’ भेटत । हुनक मैथिलीमे “श्रीमद्भागवत गीता“ आ “महामना राम“ मैथिली उपन्यास पुस्तक प्रकाशित भेल अइछ ।
(फेसबुकस’ मैथिली अनुवाद)