
प्रा. परमेश्वर कापडि
मैथिली रंगमंचक परिधि ओ व्याप्तिक आकाश बहुत व्यापक, सूक्ष्म ओ ऐतिहासिक पौराणिक रहल होइतो, एकर सही आंकलन ओ समुचित मूल्यांकन, विश्व रंगमंचो दिवसक अहू कालखण्डमे नहि होएब भकचोन्ह दृष्टि दोखे अछि ।
व्यापक अर्थ, सन्दर्भमे उदार भावस’ निङहारने, देखएमे अबैछ जे मैथिली रंगमंचक तीनगोट स्वरुप दृष्टिगोचर अछिः
(१) मैथिली लोक रंगमंच:
एहि अन्तर्गत् लोक नाट्य, लिला कीर्तन, (गाथा-नटुआ) नाच आदि होइत रहल अछि । ई तहिएके अइ, जहिया रातिमे इजोतलेल अंडी बघंडी तेलक मसाल बडैत छल । दरवार, दलान आ शादी विवाह ओ मांगलिक अनुष्ठानिक प्रदर्शनक समय, अवस्थामे एकर स्वरुप सन्दर्भ ओ हेतुक अपन अलग अनुशासन एवं व्याकरण अछि ।
स्त्रीगणक अपन एकछक’ अङने असोरा मंच रहल अछि आ एतए जटजटिन, डोमकछ, पमरिया नाच, स्वाङ् आदि खेलल जाइत अछि ।
(२) बाल रंगमंचः
मैथिली बालसंसार ओ मैथिली बालसाहित्य संसारक अलग स्वतन्त्र अस्तित्व ओ पहचानक मान्यता उनैसम् शताब्दीक उतरार्धमे भेटल अछि । बालरंगमंच भौतिक, अभौतिक आ प्रतिकात्मक भावनात्मक अछि ।
आधुनिक वृहत् अर्थमे बालखेल बाललीला अइ आ जत्त’-जत्त’ जहिया जेना ई खेलल जाइछ, ओएह खेल-ठाम ई भावनात्मक मंच होइछ । घर-अङना, दुरा-दलान, खेत-खढिहान, गाछ-बिरिछ, बारी-झारी, नदी पोखरि, कोरा-घुघुवा, आदि बालमंचके रुपमे मानल जाइछ ।
एहि मंचपर ’स्क्रिप्ट’बला अनुशासित नइ, बाल-खेल; बाललील खेलल जाइछ । शिशु आ बालकमे जहिना भेद होइछ तहिना एकर भावनात्मक मंचमे सेहो । घुघुवा-झुलुवा, चनामना, चोरा-नाकी, अनहरिया-इजोरिया, चोर-सिपाही, उज्जी-उज्जी, करोटिया-सिलौटीयास’ ल’क’ दालि-भात, कनिञा-पुतरा, हथियासुर, कबड्डी-कबड्डी आदि अनगिन्ती बालखेल/लीलासबहक ई मंच अछि ।
घीयापुता बाल खेलमंचक उपयोग ओ प्रयोग आनके देखबएलेल नहि, अपने आनन्द मनोरन्जनक लेल करैत, खेलैत अछि ।
(३) आधुनिक रंगमंचः
आधुनिक, उत्तरआधुनिक प्रविधियुक्त आ ’डिजिटल स्क्रिन’ एकर पहचान आ पहुँच अछि । आजुक रंगमंच दिवसक सुअवसरपर ई एगो बुन्ना फदका मात्र अछि आ एहि विषय सन्दर्भमे बहुते वाद-विवाद, छलफल, विमर्श, समीक्षा मूल्यांकन आदि कएले जा सकैछ सएह नहि, आबो आरो कएले जएबाक चाही ।