बालविवाह (भोजपुरी कविता)


प्रिया मिश्रा
हांथ जोडी विनति करि बाबू जी हमार।
करि ना बियाह अभहीं बाली बा उमर।।
होई बालविवाह हमर टुटि सब सपना।
अभहीं ना सावारे पाईब ससुरा के आंगना।।
बिस बरसिया होई करब तब बियाह हम।
अभहीं करब बालविवाह से ईनकार हम।।
पढेके बा मन हमरो छुए के बा आसमा।
सपना हाजार बाटे लाखो बाटे आरमा।।
होई बालविवाह कमे उमर मे गरभ रही।
हमरो शरीर टुटि होई नाही ई सही।।
जानी जानी बाबू जी काहे मरेला छोडतानी।
बतिया हमार रउवा काहे नाही सुनतानी।।
पढि लिखी अफसर बनी नाम रौशन करब।
ईज्जत प्रतिष्ठा के लाज सब राखब।।
बेटवा से जादे राउर सेवा हम करब।
जईसे राखब हम वोईसे ही रहब।।
होई अभहीं शादी त अधिकार केतना छुट जाई।
खेले से लेके पढे के अधिकार सब हनन होई।।
 “बिरगंज नेपाल”

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