
राम भरत साह
स्वतन्त्र हैं हम,
परतन्त्रताका नाम ना लो,
गुलामी है एक अभिशाप,
स्वतन्त्र विचारो से तोलो ।
(२)
स्वतन्त्र है शुभ्र खेत,
हिमालय कि शाखाएँ,
नेपाल भू का खण्ड-खण्ड,
मानव कि आशाएँ ।
(३)
स्वतन्त्रताका अर्थ पुछो,
किसी पिंजरे कि कैदी पंक्षी से,
स्वच्छन्द धरा पर विचरण करते,
ओैर कैदी अक्षि से ।
(४)
स्वच्छन्द है रवि- शशी,
धरा गगन स्वच्छन्द है,
अन्तरिक्ष के नक्षत्रो के साथ,
पवन स्वतन्त्र है ।
(५)
अति´´शव्द है
सूचक विनाश का,
चाहे हो वह सामाजिक,
या वैयक्तिक विकासका।
(६)
इतिहास ओैर संस्कृति,
है इसके साक्षात साक्षी,
सभ्यता कि परम उन्नति ही,
पाती है,अकस्मात क्षति ।
(७)
अति स्वतन्त्रता मानव समाज में,
है घ्योतक भ्रष्टाचार की,
इसे पनपने न दो,समाज में,
रक्षक बनो संसार के।
(८)
अपने कर्तव्यो को ही,
पराधिकार मानो,
नियमो से निर्मित समाज को ही,
स्वतन्त्र जानो ।
लेखक साह, वरिष्ठ पत्रकार एवम् प्रेस स्वतन्त्रता सेनानी छियै । (सं.)