कार्ल मार्क्सके सर्वहारा वर्गीय विचार


रोशन जनकपुरी
“जगतके बुझ’बला आ व्याख्या कर’बला बहुत भेल, लेकिन मुख्य बात जगतके बदलनाइँ अइछ ’’ ) मार्क्सके कहब छल । दू सय वर्ष पहिने अपन प्रसिद्ध रचना कम्युनिस्ट घोषणापत्रमे मार्क्स लिखलक ः कम्युनिज्मके भूत युरोपके खेहाइर रहल अइछ ।
अखन विश्वमे मजदूर वर्गके कोनो देश नइँ अइ । लेकिन खाली युरोपे नइँ, अखनो कम्युनिज्मके भूत विश्वभइरके साम्राज्यवादी शक्ति आ उत्पीडक वर्गके सब स बेसी डेरा रहल अइछ । सोभियत संघके विघटन भेला तीन दशक स बेसी भ’गेल अइछ । ओना वैचारिक रूप स सोभियतसंघके विघटन त १९५६ मे भ’गेल छल, जहिया ख्रुश्चेभके नेतृत्वमे ओ वर्गसंघर्षके जगहपर शान्तिपूणर् संक्रमणके बाट धयलक ।
सर्वहारा अधिनायकत्वके विचारबला चीनके संशोधनवादमे पतन भेला सेहो पाँच दशक स बेसी भ’गेल अइछ । लेकिन मार्क्सवाद आ सर्वहारा अधिनायकत्वके भूत अखनो संसारभइरके पूँजीपतिवर्गके खेहाइर रहल अइछ । एहे कारण अइछ जे सांगठनिक आ भौतिकरुपे विश्वस्तर पर रक्षात्मक आ कमजोर भेलाके बादो वैचारिकरुपे सब स बेसी आक्रमण मार्क्सवादी विचारेपर भ’रहल अइछ । मार्क्स आ ओकर सर्वहारा वर्गीय विचार पूँजीपति वर्ग आ उत्पीडक वर्गके लेल सब स खतरनाक आ भयावह विचारधारा अइछ ।
ई स्वाभाविके अइछ। कारण जे, सामाजिक संरचनाके सब स निचलका सीढीपर ठाढ सर्वहारा श्रमजीवीवर्ग जाबेतक शोषण स मुक्त नइँ होयत, ताबेतक समाजमे वर्गसंघर्ष जीवित रहत । आ जाबेतक बजार, नाफा, श्रम शोषण, पूँजी, नीजी सम्पत्ति आ एकर रक्षक चरित्रबला राज्यसत्ता रहत, ताबेतक नइँ त सर्वहारावर्गके शोषण रुकत, नइँ त वर्गसंघर्ष रुकत। तात्पर्य ई अइछ जे समाजमे वर्ग आ वर्गीय असमानता रह’तक सर्वहारावर्गके मुक्ति सम्भव नइँ अइछ । अही स मार्क्सवाद खाली पूँजीपति वर्ग नइँ, सब वर्गके विलोपीकरण आ वर्गहीन संघबद्ध विवेकसम्मत सामूहिक चेतनाबला साम्यवादी विश्वके परिकल्पना प्रस्तुत करैत अइछ । लेकिन संसार भइरके सम्पदा आ श्रमके शोषण क’ क’ पूँजीके स्वर्ग भोइग रहल साम्राज्यवादी पूँजीपति वर्गके लेल ई विचार स्वर्ग छिना जायसन दुखदायी परिकल्पना अइछ ।
पूँजीपतिके स्वर्ग ओकर वर्ग अस्तित्वमे अइछ, त सर्वहारावर्गके मुक्ति वर्गके समापनमे अइछ। वर्गसंघर्षके अनिवार्यता आ आवश्यकता अही स अइछ ; वर्ग बचयनाइ आ वर्ग समापनके संघर्ष। अही स पूँजीपतिवर्ग आ ओकर विचारकसब मार्क्सवादी विचारपर निरन्तर आक्रमण करैत अइछ, ओकरा तोडैत मोडैत रहैत अइछ ।
वर्गसंघर्ष, सर्वहारा अधिनायकत्व, सर्वहारा पक्षधरता, आ अनेको पराजयके बादो वर्गसंघर्षमे सर्वहारावर्गक अन्तिम जीतके विवेकसम्मत विचारके अतिरिक्त, संशोधनवादी मार्क्सवादी प्रलापसब कि त भ्रम अइछ, कि त पूँजीवादी भटकाव, जे उत्पीडित वर्ग आ समुदायके शोषणक सब रूप स मुक्त होब’के संघर्षके कमजोर करैत अइछ । मार्क्सवाद निरन्तर संघर्षके रस्ता अइछ, जे प्रयोग, अनुभव, नया प्रयोग आ नव अनुभवके के दू चरणके निरन्तर व्यवहारके बीच स विकसित होइत रहैत अइछ ।
अई सन्दर्भमे मार्क्सवादके बारेमे लेनिनले विचार मननीय अइछः “वर्ग संघर्षके नियम त पूँजीपति सेहो जनैत अइछ । अही स मार्क्सवादी होब’के अर्थ मात्र वर्गसंघर्षके बात कयनाई नइँ अइछ । मार्क्सवादी होब’के अर्थ अइछ वर्गसंघर्षमे सर्वहारा वर्गके अन्तिम जीतके विश्वास, सर्वहारावर्गके पक्षधरता, आ सर्वहारा अधिनायकत्वमे समाजवाद होइत साम्यवाद तकके विचारके स्वीकार कयनाई ।’’

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