जीवन को गीत कहूँगी (हिन्दी)


कृति चौबे
आने-जाने वाले हर सुख-दुःख को मीत कहूँगी।
पूछेगा कोई क्या है जीवन, तो गीत कहूँगी।
जीवन को गीत कहूँगी

बोल नहीं हैं धड़कन हैं, ये शब्दों के ताने-बाने ।
इनके भाव वही जाने जो मन की मर्यादा जाने ।
परिभाषा में ढल जाए, जीवन तो ऐसा गीत नहीं,
ये उन्मुक्त हृदय से फूटे, अपनी राह स्वयं ठाने।
पल(पल घटती उमर डगरयिा को मैं जीत कहूँगी
पूछेगा कोई क्या है जीवन, तो गीत कहूँगी।
जीवन को गीत कहूँगी

एकाकीपन हँस दे, रो दे, गीत नकिलता है कोई।
प्राणों में उत्सव हो तो संगीत नकिलता है कोई।
मन के सारे मौसम न्यारे, पतझड़ या मधुमास रहे,
कोई सब कुछ हारा इस पर, जीत नकिलता है कोई।
कुछ खोने, कुछ पाने को, जीने की रीत कहूँगी१
पूछेगा कोई क्या है जीवन, तो गीत कहूँगी।
जीवन को गीत कहूँगी ।।

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