
श्यामसुन्दर ‘पथिक’
मिथिला-मधेश क्षेत्रक प्रायः सभ गाममे डिहबार थान रहैत अइछ । गामक दक्षिण दिशा वा गामक सिमानमे थान पाओल जाइत अइछ । डिहबार थानके राजाजी थान कइहकए सेहो सम्बोधन कएल जाइत अइछ । प्राचीन इतिहासमे राज्य आऽ राजा रहवाक परम्परा एखनो विद्यममान अइछ । यद्यपी समय परिवर्तन सङ्गे वर्तमानमे विश्वक किछ बाहेक प्रायः देश सभमे राजा रहबाक परम्परा इतिहासमे सिमित भ गेल अइछ । यद्यपी मिथिलाक गामगाममे एखनो राजाक प्रतिकक रुपमे डिहबार पूजित अइछ ।
गामक राजाक रुपमे डिहवारके पूजाआजा करवाक परम्परा पुस्तोसँ चलैत आइब रहल अइछ ।सामान्यतयाः राजा दरबारमे रहैत अइछ मुदा मिथिलाक गामगाममे राजा डिहबार एकान्त स्थानमे बर वा पीपरके गाछतर रहैत अइछ । गाछ तरमे माइटक पींडी (माइटके गोल कऽ कए बनाओल गेल) बनाकए राजा डिहबारके रुपमे जनसमुदायद्वारा पूजा-आजा कएल जाइत अइछ । राजा डिहबार सङ्गहि भगवती, जोगनी, डगरीन, गोरैया आदी देवी-देवताक नामसँ सेहो पींडी बनाकए स्थानीयवासिन्दा सभ पूजा-आजा करैत अइछ । कतेको स्थानसभमे डिहबारक मूल पींडीक सुरक्षा हेतु छोट पक्की घर समेत बनाओल जाऽ रहल अइछ । मुदा एक दशक पहिनेधरि मिथिलाक डिहबार थानसभ बर वा पीपरक गाछ तर खुल्ला रुपमे रहैत छल ।
डिहवारके सुमिरण करैत मिथिला क्षेत्रक महिलासभ एहन गीत गाबैत अइछः घोडबा चढल राजाजी, हलसैत आबै यौ आहाँ राजाजी बावू, हाथ दुनु कमलक फूल यौ आहाँ राजाजी बावू, कवने नैया डुबए, कवने नैया उगए, कवने नैया उतरत पार यौ अहाँ राजा जी बाबू…अर्थात घोडा चढिकए दुनु हातमे कमलक फूल ल कए राजा डिहबार आइब रहल छइथ । कोना नाव डुबिरहल अइछ त कोनो चइल रहल अइछ । कोन नावमे नदी पार करब ? कइहके राजा डिहबारके गीतक माध्यमसँ सुमिरन कएल जाइत अइछ ।
एहि प्रकारे डिहबारके दोसर भगैतके पाँइत एना अइछः छोटीमोटी तुलसीके हौ गछिया अरे बाबु भूँइया लौटै हो डाइर, ताहि तरे खेलै राजाजी गेलै हो गेलै ऐलसाय…अर्थात छोटछोट तुलसीके गाछी अइछ । हलसैत तुलसीक गाछीक डाइर जमिनके छुबिरहल अइछ । ओहि तुलसीक गाछीक निचा राजाजीके निन्द लागि जेबाक बात गीतक पाँतिमे वणर्न कएल गेल अइछ । तहिना मिथिला क्षेत्रमे ईहो गीत अत्यधिक चर्चित अइछः ब्राम्हण बाबु यौ कनियो कनियो होइयौ न सहाय…। प्रस्तुत गीतमे ब्राम्हण कहि डिहबारके सम्बोधन कएल गेल अइछ । आपत-विपत वा समस्या परलाक अवस्थामे ब्राम्हण अर्थात राजाजी डिहबारके सहारा बनबाक लेल विन्ती कएल जाइत अइछ ।
ग्रामिण जनजीवनमे डिहबारक अपने विशिष्ठ महत्व रहल अइछ । गाममे वैवाहिक परिधानके शुभारम्भ करैतकाल सेहो डिहबारके विशेष महत्व होइत अइछ । बर-बधु दुनू पक्षक दिससँ कुमरौन(कुमरम्)के दिन घरक मूल व्यक्ति डिहबार थानमे जाऽ कए सफल वैवाहिक जीवनक लेल याचना करैत पूजाआजा कएल जेवाक परम्परा अइछ । तत्पश्चात विआह करवाक लेल आवश्यक उपक्रम तैआर कए ढोल, पीपही आदी परम्परागत बाजा-गाजा सहित डिहबार थानमे जाऽ कए सुमिरन कएल जाइत अइछ । बाबा डिहबार अनिष्ट होयबासऽ मुक्त करबाक जनविश्वास अइछ । डिहबार अर्थात राजाजीकें सुमिरण कएलाक बाद दुलहा सहित बरियातीगण प्रस्थान करैत अइछ ।
तहिना नवकी कनियाँ पहिल बेर ससुरा अर्थात पतिक घर प्रस्थान करवासँ पूर्व सीमामे पहुँचलाक बाद ‘हे, बाबा डिहबार आइधरि हम अहिँक छत्रछाहमे बढलौं, पललौं मुदा आइ ई ठाम छोडिकए कर्मघर जाऽ रहल छी, अन्जानमे हमरास भेल गल्ती माफ कऽ दिअ, आऽ हमरा सुखी जिवनके लेल आशिर्वाद दिअ’ कहैत नव कनिआ डिहबारसँ याचना करैत अइछ । राजा डिहबारके सुमिरन कएलाक बाद महिलासभद्वारा घरसँ लाओल गेल लोटाक जल पियेबाक परम्परा एखनो हमर अहाँक समाजमे कायम अइछ ।
डिहबार थानमे प्रत्येक वरिषक अषाढ पूणर्िमाक राति विशेष पूजाआजा कएल जाइत अइछ । एकरा स्थानीय भाषामे जातपूजा कहल जाइत अइछ । किर्तनीया मण्डलीक सङ्ग ढोल, पिपही, डफरा, बौसली सहितके पौराणिक लोक बाजाक सङ्ग खीर, लड्डु, फलफूल, पान, सुपारी इत्यादि प्रसादके रुपमे चढाओल जाइत अइछ । गामक प्रमुख व्यक्ति, माइन्जन आऽ डिहबार थानक मूल पूजारी (भगता) गामटोलमे घरही चन्दा सङकलनसऽ लऽ कए सम्पूणर् सरमजान जुटियेबाक काज करैत अइछ । अषाढी पूजाक राति घरही अनिवार्य रुपमे लड्डु, पान, सुपारी, अक्षत, फूल सहितके डाली पूजाक लेल डिहबार थानमे लऽ जेबाक परम्परा पुस्तैनी चलैत आइब रहल अइछ ।
डिहबार साकाहारी भेलाक कारणे बलि प्रदान वर्जित कएल गेल अइछ । यद्यपी डिहबार प्राङ्गणमे रहल भगवतीके पींडीक आगाँ छागर, पाठी, पेरवा इत्यादिक बलि प्रदान कएल जाइत अइछ । ओहि पूजामे धामीके अनिवार्यता अइछ । गाममे अनिष्ट नहि होय से कामनाक सङ्ग धामीद्वारा तान्त्रिक पूजा कएल जाइत अइछ । गामटोलमे काल वा कोनो प्रकारक अनिष्टके प्रवेश नहि होय से जनविश्वासक सङ्ग गामक सीमानमे जाऽ कए मुर्गी उडेवाक परम्परा सेहो रहल अइछ ।
जातपूजाक राति बलिप्रदान कएल गेल छागर पाठीक मुडा आऽ पेरबा धामीये लऽ जाइत अइछ त बाँकी भाग पूजाक भोर सामूहिक रुपमे माउस बनाकए बरबैरक भाग लगाओल जाइत अइछ । जकरा स्थानीय भाषामे तनुका सेहो कहल जाइत अइछ । समुच्चे टोलभरि छागरपाठीक माउस बाँटी लगवैतखन एकदम कम भाग परैत अइछ, तथापि ओइ माउसके प्रसादके रुपमे परिवारक सम्पूणर् मांसाहारी सदस्यसभद्वारा ग्रहण कएल जाइत अइछ ।
दशमीक अतिरिक्त दीपावली, फगुआ (होरी), रामनवमी सहित अन्य पावनि त्योहार एवम् अनुष्ठानक अवसरमे सेहो डिहबार थानमे धार्मिक अनुष्ठान सभ होइत रहैत छैक । डिहबार अर्थात राजाजी थानमे जा कए कबुला कएलापर पूणर् होयवाक जनविश्वास रहल अइछ । कबुला पूणर् भेलाक बाद डिहवार थानमे लड्डु, खीर, पान, सुपारी, घोडकलेश (माटिक घोडा), झाँप, चनमा आदी चढाओल जाइत अइछ । डिहबार थानमे नियमित पूजा-आजाकलेल थानपति अर्थात पूजारी सेहो राखल जाइत अइछ वा जातपूजा (अखाड्ही पूजा) सहित विशेष अनुष्ठानक अगुवाइ करए लेल गामेक एकगोटाके जिम्मा देल जाइत अइछ । गामक महिलासभ कोनो पावनि (व्रत) लेलापर वा विशेष अवसरसभमे डिहबार थानमे साँझ देवाक (दीप प्रज्जवलन) अनिवार्यता रहल अइछ ।
भारतीय संस्कृतिविद् आशुतोष भट्टाचार्यक अनुसार ग्राम देवतामे व्यक्तिगत उपासना मात्र नहि सामुदायिक जनजीवन आ उपासना तत्व सेहो निहित होइत छैक । मिथिलाक लोकजीवनमे देवीदेवतासऽ बेसी ग्रामिण जनजीवनमे डिहबारप्रति अगाध आस्था रहैत आबिरहल अइछ ।
तहिना इतिहास एवम् संस्कृतिविद् प्रा. डा. पीताम्बरलाल यादवक कथनानुसार ग्राम देवता डिहबारप्रतिक आस्था हिन्दू धर्मक एकटा अद्भूत आधार स्तम्भ मानल गेल अइछ । मानव सभ्यताक विकास क्रमसँगे स्वस्फूर्त रुपमे एकर विकास होइत आबि रहल अइछ । इतिहासमे उल्लेख भेल तथ्य अनुसार पहिने छोटछोट राज आ तक राजा होइत छल । ओ राजासभ जनतापर शासन मात्र नइँ आपतविपतमे रक्षा सेहो करैत छल । नेपालमे १४हम् शताब्दीदिस सिम्रौनगढक पतन पश्चात माण्डलिक राज्यसभ कायम भेल छल ।
प्रा. डा. यादवक अनुसार माण्डलिक राजासभ जनताक दुःख-पीडामे साथ दैत छल । एक-आपसमे द्वन्द्व अर्थात शक्तिक दम्भके कारणे भेल भिडन्तक क्रममे राजा सभक अन्त्य भेल । यद्यपी ग्रामिण जनजीवनमे राजाप्रतिक आस्था रहलाक कारणे राजाके अन्त्य भेलाक बादो तात्कालिन प्रजाप्रेमी राजाप्रतिक आस्था एखनो ग्राम्यजीवनमे विद्यमान अइछ । जकर पुष्टी राजा सलहेश, कृष्णाराम, लोरिक, दीनाभद्री, कारिख महाराज, गोबिन्द गणिनाथ, धर्मराज आदी लोकनायक सभक पींडी बनाकए पूजा-आजा करवाक परम्परा मिथिला क्षेत्रमे कायम रहैत आएल अइछ ।
समग्रमे मिथिलाक हिन्दू समुदायकेंं धार्मिक आस्थाक प्रमुख केन्द्र डिहबार छियैक से कहएमे कोनो सन्देह नहि अइछ । लोकआस्था एवम् विश्वासक कारणें जन-जनमे राजा डिहबारप्रतिक आस्था कायम रहैत आएल अइछ । ई एतेक मजबूत अइछ जे बढैत आधुनिकताक बसातके एखनोधरि कोनो प्रभाव नहि परल अइछ । हिन्दूधर्मक निभपर टिकल अटूट राजाजी अर्थात डिहबारप्रतिक आस्था निरन्तर चलैत आइब रहल अइछ । संस्कृति, सभ्यता संस्कार एवम् आस्थाक धरोहर डिहबारके राजाजीक रुपमे पूजन युगयुगान्तरधरि चलैत रहत से कहवामे कोनो दुविधा नहि अइछ ।
(लेखक, भाषा, साहित्य, कला,संस्कृति, इतिहास एवम् समाजक समसामयिक विषयके लेखनमे सक्रिय छइथ । सं.)