
सन्तोष कुमार चौधरी
राजविराज । नवगठित राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिद्वारा एहिठाम एक संवादात्मक छलफल आयोजन कयल गेल । छलफल ’बहुल राष्ट्रिय राज्य स्थापनार्थ राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्ति’ शीर्षक पर केन्द्रित छल । आयोजक संगठनक नेता दिपेन्द्र कुमार चौधरीद्वारा अध्यक्षता कयल ओइ कार्यक्रममे दोसर नेता केशव झा छलफलक विषयवस्तु प्रस्तुत कयने छल । रिना झाद्वारा स्वागत कएल गेल छलफलमे संगठनक नेतागण राम नरेश राय, कौशल सिंह, राजीव झा लगायत उपस्थित छल । कार्यक्रममे सप्तरी जिलाक पूर्व सांसद् महेश यादव, उमेश यादव लगायत विभिन्न लोकसब सहभागी छल ।
मधेशी नेता राजेन्द्र महतोके विशेष सक्रियतामे राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्ति गठन कयल गेल अछि । जकर उद्देश्य बहुल राष्ट्रिय राज्यके स्थापना कहल गेल अइछ । कार्यक्रमक ब्यानरमे स्वदेशवाद, बहुलराष्ट्रवाद, सामुदायिक समाजवाद, बहुल राष्ट्रिय राज्य आ राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिकेँ संगठनक मार्गदर्शक विषयके रूपमे प्रस्तुत कयल गेल अछि। अखन संगठनक जिला भेला अभियान चैल रहल छै । नेता सबहक अनुसार एकर बाद संघर्ष आ तकर बाद विद्रोहक कार्यक्रम तय भेल छै। संगठन अपन अभियानक क्रममे हेबाक कारणे संगठनक दर्शन वा विचारधारा पर छलफल हेतु आजुक कार्यक्रम आयोजित छल ।
छलफलमे नवीन क्रान्तिक आवश्यकता पर मात्र जोड देल गेल छल, मुदा विगतमे भेल क्रान्ति सबहक सन्दर्भके जे चर्चा हेबाक चाही, तकरा नजर अन्दाज करक कोसिस देखल गेल। नव क्रान्तिक पृष्ठभूमिक रचना सेहो नवीन प्रकार सँ प्रस्तुत भेल । जइमे पूर्वीय दर्शन, पश्चिमी दर्शन, युरोपेली उपनिवेशके असर, अर्थ राजनीति, भारत आ चीनके उदय आ नेपालक आवश्यकताक पृष्ठभूमि पर स्वदेशवाद आ स्वदेशवादक स्थापनार्थ राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिक आवश्यकता बताओल गेल छल। मुदा मधेश आन्दोलनक बात उठएके छलै आ उठिए गेलैक । परञ्च एहि बातपर सब किओ सहमत देखल गेल जे मधेशके जायज माँगक विषयमे सब दिन उठैत रहयवला आवाज मन्द पैर गेलाक वर्तमान अवस्थामे यदि कोनो कोणसँ किओ हाक दैत छै त ओकर हाक पुरके चाही ।
नेपालक भूराजनीति अनेकानेक अन्तरविरोधसँ ग्रस्त छै । एहिठाम आन्तरिक वा बाह्य अनेक सबाल पर प्रतिकार, प्रतिवाद, संघर्ष, आन्दोलन, क्रान्ति, विद्रोह, सशस्त्र युद्ध सबकिछ होयत रहलय, मुदा मधेश अपन आ लोकतन्त्रके अस्तित्वसँ जुडल विषयमे मात्र गम्भीर देखल गेल । मधेश एकटा राष्ट्र छै, ओ अप्पन सांस्कृतिक जीवनक अनुभूति करैत छै । मध्यदेशीय संस्कृति मधेशक प्राण छिएक । मधेश स्वपहिचान आ सहअस्तित्वक आधार पर राष्ट्रिय राज्य नेपालक अखण्डित हिस्सा छै ।
संविधान बनलाक बादसँ मधेशवादके खण्डन स्वयं मधेशसँ होमय लागल अइछ । आब अखन मधेशवादके स्वदेशवादके नामसे विस्थापित करबाक घटना सेहो दृष्टिगत भ’रहल अइछ । मुदा मधेशवादके स्वदेशवाद विस्थापित नइँ क’ सकैत अइछ । ई एक दोसरके विपरीत नइँ छै । मधेशवादमे स्वदेशवाद अन्तर्निहित नइँ छैक, से बजनाय, राज्यसँग विमुख होनाय हेतै । अथवा, स्वदेशवाद द्वारा मधेशवादके अस्वीकार करब कहला पर राज्यक अस्तित्व अर्थहीन बुझेतैक। तखन सार ई भ’सकैत अइछ जे मधेशवादसँ ओतप्रोत स्वदेशवादके लेल आगाँ बैढ सकैत छी । मधेशवाद राष्ट्रभक्ति छै आ स्वदेशवाद देशभक्ति छै ।
राष्ट्र, राज्य, देश आदि शब्दक अर्थ अपन व्युत्पत्तिक आधार पर प्रष्ट रहितहु देश काल परिस्थिति अनुसार राष्ट्र शब्दक प्रयोग राज्यक अर्थमे सेहो होमय लागल। तैं ई दुनु शब्दक बीच एक प्रकारके भ्रम आ अस्पष्टताक स्थिति देखल गेल । एहेन भ्रम उत्पन्न करयमे एकल राष्ट्र राज्य सबहक विशेष भूमिका छल। सँगहि तेहेन राज्य, जहिठाम कोनो खास अनुदारवादी समुदाय (सांस्कृतिक समूह/राष्ट्र) क वर्चश्व छै, तहिठाम आन समुदायक पहिचान मिटाबय लेल सेहो राष्ट्र-राज्य बीच भेद मिटाबयके प्रयास भेल छै ।
ओ लोक समुदाय, जे एके भूखण्ड (विशिष्ट क्षेत्र) क बासी हो, वा जे समभाषा वा एक्कहि भाषी जनसमूहके हो, जिनक संस्कृति, रीति-रिवाज समान हो, ओ एक राष्ट्रक नामसँ परिभाषित होयत अइछ । स्वदेशिताक भाव आ व्यवहार एहेन राष्ट्रक अन्तस्थमे सेहो विद्यमान रहैत छै । मुदा राष्ट्र राज्यक भितर स्वदेशके बात केला पर ओ एक वा कोनो खास राष्ट्रक नैह, अपितु सम्पूणर् देशके प्रति निष्ठाके व्यक्त करैत छै । तैं राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिकेँ आओर आगाँ बढयसँ पहिने मधेशवाद आ ’स्वदेशवाद’क पहेलीसँ बहरा जेबाक चाही । एहेन शब्द वा कथन, जहिमें कोनो विषयक व्याख्या घुमा फिराक वा भ्रामक रूपमे व्यक्त भेल हो, आ ओही लक्षणक सहारे ओकरा बूझके प्रस्ताव हो त तइमे समय रहिते स्पष्ट भ’जेबाक चाही ।