
सन्तोष कुमार चौधरी
देशमे पहिल क्रान्ति शुरू भेलाक बाद राणा शासक लोकैन शासन व्यवस्थाकेँ जन-उन्मुख बनेबाक आवरणमे क्रान्तिकारी गतिविधि पर नियन्त्रण करबा लेल नेपाल सरकार वैधानिक कानून (२००४) घोषित कएलैन, जे वि.सं. २००५ सँ लागू हेबाक छल, जे क्रान्तिकारी द्वारा महत्त्व नइँ देलासँ अर्थहीन भ’गेल । संविधान सदृश ओहि कानूनमे तत्कालीन श्री ५ महाराजाधिराज आ श्री ३ महाराजक गद्दीके रोल उत्तराधिकार परम्परा सँ चलिआयल रित रिवाज बन्देज कानून अनुरूप कायम रहैत सदाक लेल अपरिवर्तनीय आ अटूट रहबाक व्यवस्था कयल गेल छल । अर्थात् एहेन व्यवस्थाक ध्येय महाराजाधिराज आ प्रधानमन्त्रीक वंशानुगत परम्पराकेँ अक्षुण्ण बनेनाय छल । यद्यपि ओइ क्रान्ति सँ प्रधानमन्त्री पद पर राणा सबहक वंशानुगत अधिकार समाप्त भ’गेल मुदा शाह वंशक शासकीय परम्परा यथावत् रहल ।
क्रान्तिक बाद संविधान सभाके चुनाव कैर संविधान सभाद्वारा नव संविधान बनेबा लेल नेपाल अन्तरिम शासन विधान (२००८) लागू कयल गेल। मुदा राजनीतिक अस्थिरताक कारण से सम्भव नैह भेलापर तत्कालीन महाराजधिराज महेन्द्रद्वारा २०१५ मे नेपाल अधिराज्यक संविधान आ राजगद्दी उत्तराधिकार ऐन लागू क’ शाह वंशक राज्यसत्ताकेँ आर अधिक मजबूत बना देल गेल। ओतबे नइँ संविधानतः महाराजाधिराजक तात्पर्य वडामहाराजाधिराज पृथ्वीनारायण शाहक वंशज आर्य संस्कृतिक अनुयायी हिन्दू धर्मावलम्बी गद्दीनसीन महाराजाधिराज बुझवाक व्यवस्था करैत महाराजधिराजकेँ राज्यक सार्वभौमसत्ताक स्रोत मानल गेल। एहि समय एहेन धारणा छलैक जे नेपालक राजा संसारके सम्पूणर् शासक मध्य सबसँ अधिक शक्तिशाली छैक ।
महाराज महेन्द्रद्वारा जनताक संसद आ सरकारकेँ विस्थापित क’ २०१९ सालमे आनल गेल संविधान सेहो नेपालक सार्वभौमसत्ता श्री ५ महाराजाधिराजमे निहित मानैत राज्यके कार्यकारिणी, व्यवस्थापिका एवं न्यायसम्बन्धी सम्पूणर् अधिकार हुनके सँ निःसृत हेबाक व्यवस्था कयलक । पञ्चायती व्यवस्थाक नामसँ महाराजाधिराजक प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ कयल गेल आ देशके इतर राजनीतिक शक्तिकेँ प्रतिबन्धित कय महाराजाधिराजक शासनकेँ सदाके लेल अकन्टक माइन लेल गेल ।
संसारमे एक परमसत्ताके अतिरिक्त आन कोनोहु सत्ता स्थिर नइँ छै । तीन दशक उपरान्त जनता पुनः जागल आ जन आन्दोलन (२०४६) द्वारा बहुदलीयताकेँ पुनर्स्थापित करैत नव संविधान (२०४७) द्वारा सार्वभौमसत्ता नेपाली जनतामे निहित मानल गेल । २०४६क जनआन्दोलन महाराजाधिराजकेँ राज्यसत्तासँ विस्थापित त नैह क’सकल मुदा हुनका संवैधानिक राजाक नामसँ हुनका पर अंकुश राखक कोसिस कयल । यद्यपि २०४७ क संविधानमे नेपाल राज्यकेँ संवैधानिक राजतन्त्रात्मक अधिराज्य कहल गेल छल । महाराजाधिराजकेँ पुनः निरङ्कुश हेबालेल एतवहि पर्याप्त छल। आ दशक व्यतीत होयते महाराजाधिराज द्वारा पुनः जनताक प्रतिनिधि शासक सबकेँ खेहाइर सत्तापर कब्जा जमा लेल गेल। आओर राज्यसत्ता एक बेर फेर निरङ्कुश भ’गेल । अन्ततः जनता निणर्ायक आन्दोलन कैर महाराजाधिराजक सत्ताके समाप्त कयलक ।
गणतंत्रक पहिल अर्थ राज्यक शासन जनताक हातमे हेना आ एकर प्राथमिक उद्देश्य न्याय केरऽ प्रकृति, सरकार केरऽ आदर्श रूप, आरू राज्य के भीतर व्यक्ति केरऽ भूमिका के प्रति न्याय करना छै । मुदा गणतन्त्रक अर्थ दृष्टिगत होयतो प्राथमिक उद्देश्यक प्राप्तिमे सम्यक गतिशीलताक अभाव देखल जाइत अइछ ।
नेपाल संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्रात्म राज्य छी । गणतन्त्र एकटा एहन देश अछि जतय सैद्धांतिक रूप सँ आम जनता मे सँ कोनो व्यक्ति देशक सर्वोच्च पद पर बैसि सकैत अछि, ओ राजा महाराजा नैह राष्ट्रपति कहायत छैक । एहि प्रकारक सरकार केँ गणतंत्र कहल जाइत छैक। लोकतन्त्र गणतन्त्र स अलग होइत अइछ, लोकतन्त्र सरकारक ओ रूप कहल जाइत अछि जतय सामान्य जनता वा ओकर बहुमतक इच्छा शासन करैत अइछ । आजुक दुनियाक अधिकांश देश गणतन्त्रक संग-संग लोकतंत्र सेहो अइछ । संघीयता संविधानद्वारा स्थापित तेहन पद्धति होयत छैक, जाहिमे संघ आ प्रदेश कैर दूटा सरकार शासन करैत छैक आ दिनु सरकार अपनाके निर्वाचित करयवला मतदाताप्रति प्राथमिक रूपसँ जबाफदेह होयत छैक ।
नेपाल राज्यक स्थापना भेला २६० वर्षसँ अधिक भगेल। मुदा सामाजिक, आर्थिक, मानवीय विकासमे संसारले बहुतो देशसँग बहुत पाछाँ चइल रहल छैक । देशकेँ संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र बनाबके ध्येय देशके अग्रगामी विकासक मार्गमे विद्यमान बाधासबकेँ शान्त करबाक छल । मुदा ओ बाधासबके शान्त करयक मानसिकता जनप्रतिनिधि सँ जनताधरि अभाव देखल जाइछ । संघीयता, लोकतन्त्र आ गणतन्त्रक शत्रु अखनो सक्रिय अइछ । तैँ गणतन्त्र दिवसक एहि अवसर पर आवश्यक छैक जे देश एवं प्रदेशवासी जनता एहि विषयपर गम्भीर होइथ ।