बजेट : घी गडगडायत त ने !


सन्तोष कुमार चौधरी

संघीय सरकार संसद मे आगामी वित्त वर्ष २०८१/०८२ के लेल वार्षिक बजेट प्रस्तुत केलक। बजेट एक वित्तीय योजना छै जे एक निर्धारित अवधिके लेल अपेक्षित आय आ व्ययके रूपरेखा तैयार करै छै ।
संसद मे बजेट प्रस्तुत करब, एक संसदीय विधि छै। बजेट सामान्य बहुमत से पास होय छै। अर्थ विधेयक प्रतिनिधि सभा मे मात्र पेस होय छै । बजेट पर संसदक स्वीकृतिक प्रावधान संसद के विशिष्टता अवश्य प्रदान करै छै मुदा अर्थ विधेयक पर ओ अपना के ततबे निरिह सेहो अनुभव करैत छै । तओ संसद मे विपक्षी दल सब घमर्थन करबे करै छै। कहियो काल स्वयं सरकार के समर्थक सांसद सब केँ सेहो घिघिंय्याउच करैत देखल जाय छै । लेकिन सकारात्मक बात ई छै जे बजेटक तर्जुमा मे सुधार, कार्यान्वयन मे सरकारी दृढता लगायत अनेक दृष्टि से संसद मे होयवला बहस महत्वपूर्ण मानक जाय छै ।
राज्य के लेल सरकारी बजट प्रणाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय होय छै। बजट अपनेके अपन वित्तीय लक्ष्य केँ प्राप्त करै लेल, अपन क्षमता के भीतर रैह खर्च करै लेल, सेवानिवृत्तिक हेतु बचत करै लेल, आपातकालीन निधि बनाब लेल आ अपन खर्च करै के प्रवृत्ति के विश्लेषण कैर सही रास्ता पर चलै लेल महत्त्वपूर्ण होय छै ।
अर्थमन्त्री वर्षमान पुन बजेट केँ आर्थिक सुधार के दिस उन्मुख बतेने छैथ। बजेट के केन्द्र मे नागरिक के देखैत बजेट तर्जुमा कयल गेल ओ बतेलक। निजी क्षेत्र आ प्रमुख प्रतिपक्षद्वारा सकारात्मक प्रतिक्रिया एबाक आशा व्यक्त करैत बजेट आम जनतामे सेहो आस जगायत से कहलैथ । सरकारक मान्यता छै जे देश भितर अवसर‌ उपलब्ध रैहतो देश बाहर जेबाक प्रवृत्ति हाबी छै । एहेन प्रवृत्ति के रोकय लेल युवा सब मे आस जगाबय वला बजेट अनलाक बात सेहो अर्थमन्त्री कहलक ।
ई त सरकारक बात छैक। मुदा जनताक बात की छै, से बुझना जरुरी छै। वास्तव मे, सर्वसाधारण केँ बजेटक आगमनक खबर नैह होय छै । बजेट आइब गेलाक खबर सेहो नैह होय छै । व्यापारी, कर्मचारी आ खास खास वर्ग के अपन अपन सरोकारक बात पर ध्यान अवश्य रहैत छै, मुदा बजेट मे सर्वसाधारणक  रुचि नैह रहै छै । ओना किछ पहिनहि सँ ‘जकर जोत तकर पोत’ के हल्ला सब किओ सुइन रहल छै ।
जे कोनो विषय वा वस्तु मनुष्य के इन्द्रीय सुख दै छै वा आनन्दक अनुभूति दै छै, मनुष्यक रुचि ओहि विषयवस्तु मे जागृत होय छै। नेपालक बजेट मे आम जनताक रुचि नैह रहबाक कारण इएह छै जे ओहि बजेट मे ओकरा लेल किछु नैह रहै छै। सरकार कतेको सुन्दर भाष्य बनाक कहौ जे बजेटक केन्द्र मे आम जनता छै मुदा ओकरा विश्वास तबे हेतै जखन ओ बजेटक स्वाद किछ अनुभव कर पेतै। कारण, बजेट के केन्द्र त दूर, ओ अपना के बजेट के परिधिओ मे ठाढ नैह पबै छै । जजमान सुरदास के कहलक- महाराज! घी देलौं। सुरदास बजलैथ- गडगडायत तबे बुझब ।
यद्यपि अर्थ शास्त्री, विज्ञ वा विशेषज्ञ बजेट के पक्ष वा विपक्ष मे कतेको चिरफार करौ, कतेको रत्ति, मासा बराबर कलौ; यथार्थ इएह छै जे आइ-काल्हि के लिबरल बजेट मे सबके लेल किछ ने किछ अवश्ये रहै छै । लेकिन दोसर यथार्थ इहो छै जे बजेट के सही कार्यान्वयन नैह हेबाक कारणे ओ सार्थक सिद्ध नैह होय छै। सरल भाषा मे कहल जाय त आम जनता के हिस्सा के संसाधन बाटे मे बिचौलिये सब मे पार भ’ जाय छै। मुह दुबरा के होसियार सब ठेलमठेल क’ पाछु धकलैत रहल। लेकिन ओ हो जीबठ लाइन मे लागले रहल । अन्तिममे ओ ठामो पर पहुँच गेल । मुदा कर्मचारी कहलक- आव ते सैठ गेलौ !
वस्तुत: बजेट प्रणाली के आधारभूत सिद्धान्तक ठेकान नैह रहै छै । पुँजीवादी, मिश्रित, उदारवादी, समाजवादी ई सब तरहक अर्थ व्यवस्था आ एडीबी, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जेहन प्रभावशाली संस्था एकरा गैंडफार उठेने रहै छै । आ दोसर दिस, आम जनताको नाम पर जेहो किछु बजेट बैन पबै छै ओकरो कार्यान्वयन मे अव्यवस्था, अदक्षता, अस्वच्छता, अपारदर्शिता, गैर जिम्मेवारी, गैर जबाफदेही, भ्रष्टाचार आदि नकारात्मक तत्त्व सब व्याप्त छै ।

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