चदरिया झीनी रे झीनी-भोजपुरी कविता


चन्द्रकिशोर
आदमी के सूखल जीनगी पर
एगो यक्ष प्रश्न
रेगनी के मुद्रा मे उगल
आ पूछलख
ढाई आखर प्रेम
कबिरा आजू भी प्रतीक्षा क रहल बाड़े
बाकिर आशा के बस स्टौप पर
मध्य रात के सुनसान बा
मौलश्री के सुकुमार फूल अइसन
झर रहल बाटे समय
आ गुडकल जा रहल
समय के पहिया पर
आंखन देखे और कानन सुने
बाली बात करेम त,
सामाजिक स्वतंत्रता के सन्दर्भ मे
दूध के मक्खी जस दूर
फेकल जा रहल बा आम आदमी
केतना घूटन भरल बा
तनी नियरे निहार के देख ली
डेग डेग पर
कुआं खन रहल बाड़े
खास लोग !
पास के लोग !
रोटी ला, मेशीन के बीच
पिसात आदमी के
जीवन पृष्ठ से
वेवशी के शब्द
चिरई बन के
मूल्य के फुनगी पर बइठेला
आ गावे लागेला
पूछं जो पकडै भेड की
उतरया चाहै पार”
तब
इमान के चौबटिया पर
मूल्यके दर्दनाक नीलामी होखेला
आ एहि तरहे
वेदाग चादर
गूलर के फूल हो जाला
मन न रंगवले
रंगवले योगी कपडा
आजु वेगं के घोटे नपवला पर
सांप बिल में से फन उठवले बा ।
सुनगब, धन्हकब, जरत रहब
आदमी के नियति हो गइल
रोप लेहले ह गमला मे तनाव के
ई बात कवीर के बताई केहु तरे ।

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