अन्तिम संस्कार (लघुकथा)


श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’
दुखनी दिब्याङ्ग छल । शरिरक अन्य अङ्ग दुरुस्त रहितो पैरमे पोलियो मारने छल । अर्थात उझैक उझैकके चलैत छल । लोगसब दुखनी कहिकए सम्बोधन करैत छल ।
घरपरिवारमे सेहो उपेक्षित ओ हाँस, पेरबा पोइसकए निजी खर्च जुटा लैत छल । समय बितैत गेल । भैया प्रकाशके बिआहक किछु महिना बाद भौजी सेहो अमेरिका चैल गेल । घरमे आब दुखनी आऽ माय मात्र बैच गेल । माय बेसीये बिमार रहैत छल । तैं अपना जानैत मायके सेवा-सुस्कारमे कोनो कमी नइँ होबए दैत छल ।
अइबेर दुखनीक माय बेसीये बिमार भऽ गेल । मायके ईच्छा छल जे मरएसऽ पहिने एकबेर बेटाके मुँह देख ली । फोनमे मायक अवस्थाक विषयमे अवगत करबैत भैया-भौजीके घर आबय आग्रह कएलक ।
‘हमर प्रोजेक्टके काम चैल रहल छै, एखन नइँ आइब सकबौ’ कहैत फोन काइट देलक ।’ एम्हर बेटा-बेटा कहैत दुखनीक माय दुनियाँ छोइड देलक । दुखनीके जिनगीमे दुःखके पहाड खइस  परल ।
गामक लोगसब बैठल । बात उठल जे बुढियाके आइग के देतै ? बेटे चाही । सलाह भेल जे बुढियाक बेटाके बजाओल जाय । गामक लोकसभक बीचसऽ फोन लगाओल गेल । ‘हेल्लो, प्रकाश बाजै छह, तोहर माय दुनियाँमे नइँ रहलऽ, जहिना छह तहिना आबऽ ।’
मलिन स्वरमे बाजल ‘काका एखन नइँ आइब सकै छीयऽ, दुखनीक भौजीके तालिम चैलरहल छै, बच्चा सबके परीक्षा छै आऽ हमरो कम्पनीमे छुट्टी देबयके अवस्था नइँ छै, पैसा भेंज दै चियऽ, तो सभ मिलके सदगती क’ दहक । जवाफ सुइनके सब अबाक रइह गेल । सब एक दोसरके मुँह ताकए लागल ।
चुप्पीके बीचसऽ दुखनी चिचियाके बाजल भैया नइँ एते त कि भेलै ? हम अपन मायके आइग देबै । एकटा युवा बाजल हँ दिदी, हमसब अन्तिम संस्कारके तैआरी करै छियौ, मायके आइग तोंही देबही ।

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