संस्कार (लघुकथा) 


एन्जल निलु, मिना साह
भोरे भोर काकी दोकान पर बैठके मुस्की माइर रहल छल । हम दुध किनए गेल छलौं । काकीके मुस्कियाइत देखकए बर्दास नै भेल । पुइछ देलौं ।
कि भेल काकी ।।।बड मुस्कान छोडै छियै ।
“कि  कहु बौवा, आइ एकगोटे  हमर  आत्मा खुश कैर देलक“।
के छलै ऊ।।।
“से त नै पता बौवा १ वो के छल, कतयके छल, कहियो नै देखने छलिए । लेकिन ओकरा  देखलाके बाद ई  बुझाई छलै जे निक घर के होयत । ओकर संस्कार बहुत उँच छल “। एक साँसमे ई सब बतौलक काकी ।
ए।।‘काकी, अहाँ त एकदम साहित्यिक बात करैछियै
“हँ बोवा ओकर ब्यबहारसँ हम गदगद भ गेल छी“।।।।
ओकर अतेक गुण गाबएके मतलब त बताउ, हम फेरसँ पुछलियै ।
“अखुनका धियापुताके एक्टा काज अरहाके देखलिय, करयसे पैहनै  झरैकके बाजत ।
ओ देखियौ बिना कहले मदत केलक“।
“आय भोरमे सटर उठाब लेल केकरा बजबियै
हम सोचै छलौ । ओकरा केना पता चललै भगवान् जानए । एतेक बैजके रूइक गेल । तखनो नै कहलैथ जे ओ कि केलकै ।।।।
ओ हमर नजदिक मे आइब कहलैथ “सटर उठादेब“।।
राजविराज –७ सप्तरी

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