‘धनीसबके स्वर्ग गरीबसबके नर्क स बनल छै’


रोशन जनकपुरी
प्रसिद्ध अँग्रेजी साहित्यकार बर्नार्ड शा के एकटा रोचक प्रसंग अइछ ।
एकबेर बर्नाड शा एकटा मित्रसंगे कतौ जाइत रहे । आगू स एकटा खूब मोँटघाँट आ एकटा खूब दुब्बर पातर सिकिया पहलवानसन आदमी चलल अबैत रहै । बर्नार्ड शा पातर आदमी दिस देखबैत बाजल ) ‘देखही त, केहन अकाल परल सन् आदमी छै ।’
आ (ओ फेर मोट आदमी दिस देखबैत बाजल ) ‘हे देखै छिही, एकरे कारण अकाल परल छै ।’
ओकर साथी खूब जोर स हँसल ।
सामान्यतः अइ बात स हँसी लाइग सकैय । लेकिन पूँजीवादके समृद्धि एहने विसंगतिपूर्ण तथ्य अइछ, जे बहुसंख्यक श्रमजीवी जनताके बेलगाम श्रम शोषण स जन्मैत आ मोटाइत अइछ ।
बीसम् शताब्दीके एकटा प्रसिद्ध फ्रान्सीसी साहित्यकार विक्टर ह्युगोके कहब सेहो मार्मिक अइछ । ‘धनीसबके स्वर्ग गरीबसबके नर्क स बनल छै ।’
निच्चामे भारतीय महानगर मुम्बईके फोटो प्रस्तुत अइछ । एकटा पहाड स विभाजित धनी मुम्बई आ गरीब मुम्बई दर्शबैत ई फोटो महानगरके समृद्धि आ पूँजीवादी विकासके तर्कके पोल खोलैत अइछ, जे यथार्थमे श्रम शोषण स जनमल अमानवीय परिणति के अतिरिक्त और किछु नइँ अइछ । अखन संसार भइरमे जे शहरीकरणके चरण चइल रहल अइछ, से एहने प्रक्रिया अइछ । साहित्यकार बर्नार्ड शा के व्यंग्य अही अमानवीय विसंगति पर लक्षित अइछ ।

सन् २०१८मे दक्षिण अफ्रिकी फोटोग्राफर जौनी मिलरद्वारा खीचल ई फोटो द इन्टरनेशनल मैगजिन स साभार लेल गेल अइछ ।

ताजा खबर
धेरै पढिएको