
स्नेहा झा (श्रीमस्नेह)
नशा उतरब जरुरी छै
चाहे रूप के होइ
चाहे गुणके
चाहे ज्ञानके होइ
चाहे मानके
चाहे प्रेमके होइ
चाहे धनके
नशा उतरब जरुरी छै
चाहे लत होइ कोनो
कुलत होइ कोनो
आदत होइ कोनो
ताकत होइ कोनो
नशा उतरब जरुरी छै
नशा चढब सेहो जरुरी छै
नशा उत्कर्ष पर पहुँच’बै छै
नशा फर्श पर झारै छै
नशा उचाईं देखबै छै
नशा गहिराईमे उतारै छै
नशा चढब सेहो जरुरी छै
नशा चढै छै त’ काव्य बनै छै
नशा उतरै छै त’ दर्शन अबै छै
नशा चढै छै त’ डेग खगोल टेकै छै
नशा उतरै छै त’ प्राण पाताल पहुँचै छै
नशा चढै छै त’ मीराक छन्द बनै छै
नशा उतरै छै त’ कबीर’क दोहा लिखाइ छै
नशा चढै छै त’ विज्ञान बनै छै
नशा उतरै छै त’ ज्ञान भेटै छै
तें नशा उतरब जरुरी छै
आ नशा चढब सेहो जरुरी छै
जाधरि नशा नहि चढलै
ताधरि कोनो नव रचना नहि भेलै
नव सृष्टि नहि बनलै
कोनो अविस्कार नहि भेलै
जखन नशा उतरलै
त’ मृत्यु देखेलै
मुक्तिक चाह भेलै
मोक्षक मार्ग निकललै
नशा चढै छै त’ प्राप्तीक भुख बढै छै
नशा उतरै छै त’ नेह’क मोह टुटै छै
नशा चढै छै त’ महाभारत होइ छै
नशा उतरै छै त’ गीताक ज्ञान बहै छै
नशा जखन शिखर पर पहुँचबै छै
त’ दुनिया दीन देखाए लगै छै
नशा चढै छै त’ दुनिया छै
नशा उतरै छै त’ सब दीन देखाइ छै
नशा चढ’सँ पहिने नशा उतरब असम्भव
नशा चढ’ दियौ
पुरा चढ’ दियौ
तहन नशा उतर’ के नशा देखु
ओह! नशा उतर’के नशा सँ पैघ नशा किछु नहि
नशा चढैत काल ओ आनन्द कहाँ
जे नशा उतर’मे छै
तें नशा उतरब जरुरी छै
मुदा नशा चढब सेहो जरुरी छै !