
नित्यानन्द मण्डल
फगुआक दिन बाँकी चारि, आबए कहलनि छोटकी सारि…ई होरिआएल काव्यपंक्ति छनि पब्लिक पोएट नरेश ठाकुर जीक । बुझबामे आबिए गेल होएत जे फगुआ लगचिया गेलै । तैं हिनका मादे किछु कहव, अप्रासांगिक नहि हएबाक चाही, हमरा जनैत ।
साहए तऽ कहियो रोमान्टिसिज्मक एकटा पात्र जेकाँ । कहियो पूर्वीय धर्म आ अनुशासनक ज्ञाता जेकाँ । जीवैत रहलाह अछि । ओ जीवनक प्रत्येक क्षणमे हरेक रङ्ग सभक हिसाब–किताबक आँकलन मात्र नहि कएलनि, ओही रङ्ग सभमे जीवाक उत्कट उत्कण्ठा पोसलनि, आओर अपने रङ्गमे रंगा जाएबाला व्यक्तित्व । ओ छथि कविवर नरेश ठाकुर, धनुषा जिल्लाक गंगुली निवासी ।
कहियो प्राथमिक तहक शिक्षणमे तऽ कहियो रिटायर्ड भेलाक बाद पुरहित्याई आ काव्यपाठमे जीवनक महत्वपूर्ण क्षण साझा कऽ रहलाह अछि । मैथिली हास्य काव्य संसारक उद्भट नाम अछि श्रद्धेय नरेश सर । हास्य रसक फुलझरी आ फगुआक हास्य फुहारमे दर्शक, श्रोताके गोता लगा देबाक विशिष्ट अन्दाज आ अवाज छनि हिनकामे । हँसीसँ लोटपोट क देबाक बेजोड शिल्पी छथि ओ ।
कहियो उमेरसँ उफनाएल,उमटाम मात्तल सुदूर गामक एकटा उन्मत्त अलवत लडिका जेकाँ, जे अक्सर मौकाक तलासमे रहैत अछि जे ककरा कोना अपन बोलीक वाणसँ हँसबैत हँसबैत धरती धरा दी, पेट फुला दिअनि । मुदा असलमे कहीँ त एकटा एहन अवकाश प्राप्त शिक्षक जे साँचेके शिक्षकेँ जेकाँ । अर्थात् बोली आ लेखनमे लय भेल व्यक्तित्व ।
सार्वजनिक मञ्चसभ पर एकदम प्रेमिल सम्बोधन, मुदा विचरण समाज आ जीवन–जगतक विशाल आ गहिरा समुद्रसभमे कल्पनाक सतरंगी पाँखि लगा उडान भरैत आ हेलैत –डुबैत,नँख सिक होइत । अद्भुत लेखनशैली । चिन्तन आ तर्ककँे सरल रूपमे रेखांकन करबाक जादुगरी कुशलता । ताहिके बहुत ही उदारतापूर्वक रखबाक बेजोड कला ।
हुनक फगुआक झुनझुनी, चुटुक्का, कविता, कथा आदिमे प्रेम आ प्रणय लवालव भरल अछि जे सर्वाधिक रुचिकर अछि । जाहिँमे नायक–नायिकाक हाउभाउ, स्पर्श, नृत्य आदिसँ द्रवित होइव, श्रवित होइव आ दु–तीन दिनधरि मोन गुदगुदाएल रहव । पाठकक स्वाभाविक प्रतिक्रिया । हिनक कविता आ कथासभमे जाँघ वा वक्षस्थलक बात मात्र नहि होइत अछि, ओहिमे लोभ, मोह, काम, क्रोध, समाज आ राजनीति उपर चोटगर प्रहार सेहो रहैत अछि । लेखनमे विम्बसभक प्रयोग जादुगरी । हुनक रचना सभके फ्रायड आ कालगुस्ताभक दर्शनसँ सेहो देखल एवं अध्ययन कएल जा सकैए सायद ।
तामझाम, हैसियतक प्रदर्शन, आडम्बरकसँग पूजापाठ करएबाला ढोँगी पण्डित पुरोहित, मौलाना, पादरी सभसँ लऽ कऽ समाजक अन्य पाखण्डी राजनीतिज्ञ आ स्कुल शिक्षकधरिक चर्तीकला उपर विलक्षण व्यंग्यवाण प्रहार करब हिनक मौलिक शिल्प छनि । हिनक सौन्दर्य चेत आ जीवनक खास रङ्ग रूपसभकेँ बेर बेर निघारबाक मोन होइव अस्वाभाविक नहि । हुनक बहुत चर्चित व्यंग्य आ आइरोनीसँ भरल विचारप्रधान श्रृंखला महामुर्ख सम्मेलन आ फगुआक अवसर पर आयोजित कार्यक्रम आदि बहतोकेँ ठोर पर शीर्षक आ गुदी कण्ठस्थ रहैत अछि ।
बसन्ती बयारक मुडमे अपन समकालिन सँगीसभ बीचक संवाद, चौल, नोकझोक, झौल, बात कटौबलि आ ठट्टा गज्जवक होइत छनि । तखन एना लगैत रहैत अछि जेना जीवनक सभ रङ्गसभ ओहि ठाम पृथ्वीलोक पर उतरि आएल होइक ।
जनिक ठट्टामे सेहो अनन्त गहिराई होइत छैक, ओ परिहास आ विनोदप्रियता सेहो ! गहिर सौन्दर्यचेत आ मानवीय प्रेम । चेतनासँ भरल आ माझल एकटा शिक्षक एवं कवि पावरफुल चस्मा, बज्र दाँत आ अट्टाहासक मनकारी हँसनाई लाजावाब । पछिला समयमे अभिव्यक्तिक अन्तरिक्षमे माहिर कलमक उस्ताद । विना रोकटोक, कहएबला बात ठाहिँ प ठाहिँ कहवाक चाही, लिखबाक चाही । बात जानिसाफ,दु टप्पी, विना कोनो हिचकिचाहट अपन मोनक बात कहव, हिनक मौलिक विशेषता छनि । जाहिँसँ लोकके दुःख हएतनि तकर कोनो फिकिर,परवाह नहि । एहिसँ केओ गलत बुझ्त वा अपन हित नहि होइत से कहियो नहि बुझि सकलनि ।
अर्थ–अनर्थक किछु गप्प कथिला नहि होइ ताहिँपर डाईरेक्ट प्रहार करब जे जीवनकेँ रङ्ग सभमे भोगैत अछि बिना ढोंग, बिना घमण्ड, बिना तथाकथित सामाजिक भय ! सीधा अर्थ नहि भेटव, हिनक गहिँर आ गम्भीर रचनामे । तथापि लयमे बहएबाला स्वभाव हिनका ‘पब्लिक पोएट’ अर्थात् कतौं कोनो विषयमे लगातार कविता पाठ करब । हास्य काव्य संसारमे हुनक उचाई आ आयतन अतुलनीय अछि । लोक हिनक कृतित्व आ व्यक्तित्वसँ नीक जेकाँ परिचित अछि ।
कवि सम्मेलन, कथा गोष्ठी आदिमे सराबोरि डुबलासँ,हथोरिया देलासँ, रसास्वादन आ परेखलासँ सहजै भेटि सकैत अछि । बड सुअदगर लयमे अपनेक हँसीक जादुटोना किनका नहि सम्मोहित करैत हएतनि । वस्तुतः व्यक्तिगत आ सामाजिक जीवनमे जाहिँ तरहक तनाव,उत्कण्ठा, बैमनस्यता, नैराश्यता, हरहरखटखट, तिकडम, तिलस्म, व्यामोह, फ्रस्ट्रेशन, डिप्रेशन छै से एकटा लाफ्टर मेडिशिनक रुपमे हिनक काव्य रचना काज कऽ सकैत अछि ।
एहन जनजञ्जालमे जकडल लोकक ठोर पर कनेकोकालक लेल कमोबेश मुस्किी आवि गेलै, ओकर चित्त प्रसन्न भऽ गेलै तऽ बुझु जे नरेश सरक सृजन स्वाभावतः सार्थक अछि । हिनक काव्य रचनामे ह्युमर, लाफ्टर, फार्स, कमेडी, आइरोनी, प्रहसन आदिक सुगन्ध आ सुरभी सेहोे कतौ कतौ पाओल जा सकैत अछि । तुकबन्दी, जोडती जुडलाक कारण हिनक काव्यमे मिठास तऽ पाओल जाइछ मुदा परिवर्तनकामी वैचारिकी सर्वथा अभाव, फोँक, झुझुआन आ खटास सेहो ओतबे लगैत अछि ।
हिनक होरिआएल काव्यव्यञ्जन विविध भाव भंंगिमामे भङ्ग, तरङ्ग, नवरङ्ग, रसरङ्ग, नओरङ्ग आ अन्तरङ्गसँ ढेओरल रहैत अछि जाहिमे ओ स्वयं सहित समस्त दर्शक, श्रोता लोकनि मन—मतङ्ग, मातल आ मदमस्त रहैत अछि । बसन्ती बयारमे उन्मूक्त सप्तरङ्गी फगुआएल एहि धरती आ आकाशमे फगुआक अवसर पर जनकपुरधामक परिसरमे आयोजित दर्जनों मञ्च पर बर्षभरिसँ सयौंक संख्यामे दर्शक, श्रोता लोकनि हिनक काव्य गंगामे सराबोरि स्नान करबाक लेल व्यग्रतापूर्वक आतुर रहैत अछि ।
अन्तमे आओर की कहुँ सर ? गोर लगैत छी, हाथ कहिया लगबै, फगुआ छै, अपनेसँ बहुत किछु सुनबाक बाँकीए अछि । (फेसबुक देवालस’)