‘अइबेर गाममे निक स’ फगुवा मनाएब’


श्यामसुन्दर यादव ‘पथिक’
प्रिय बालसखा जागेश्वर
सु–मधुर याद
हम सभ परिवार स–कुशल छी । तोंहु ठिकेठाक होयबे से आश करै छियौ । मित्र जागेश्वर, तोरा सँगे भेंट नइँ भेला बहुत दिन भ गेलौ । फोनफान सेहो नहिये करैत छे । तोँ त बहुत व्यस्त भ गेल छे । फोनो करएके तोरा फुर्सत नइँ छौ । हमहुँ जे फोन कइरतियौ पहलुकबा  नमरमे फोन करैत छियौ त जबाब आबैय नम्बर इज नट ईन युज । तैं आइ हमरा नइँ रहल गेल किछ लिखए ल बाध्य भ गेलियौ ।
आरे भाइ, पैसा कमबैके दौडमे सबकिछ बिसैर गेले । तोरा साथी–सङ्गी, सर–समाज, माता–पिता, पावैन त्यौहार सभस’ बइढ कए पैसे भ’ गेलौ य’ । पैसा टका तों बहुत कमा लेबे दोस, लेकिन अप्पन गामठाम, सरसमाज, संस्कृति आ अप्पन मातृभूमी तोरा कतौ न भेटतौ । पता चलल जे तोँ इन्जियरी कइरके कन्सल्टेन्सी चला कए खौब पैसा कमा रहल छे । काठमाण्डुमे चाइर महला मकान बना लेलए । सुख–सयलके जिनगी जीबै छे । तैं काठमाण्डुक रमझममे अप्पन गामोघर बिसैर गेले ।
हँ, हम चिट्ठी लिखएके प्रयोजन बता रहल छियौ । अप्पन सबके बढका पावैन फगुआ लगिचा गेलै य । पहिने त बुढ्वासभ फगुआ गबै छलै य । तकरबाद किछ साल अपना सबके निरन्तर रुपमे फगुवा गावैत रहियै । बीचमे निरन्तरके राजनीतिक द्वन्द्वके सभ बन्दे जँका भ गेल रहै । कियाक त एम्हर माओवादी जनयुद्ध, शाहीकाल आ तकरबाद तराई÷मधेशमे जारी सशस्त्र द्वन्द्धके कारण गामघर पुरे अशान्त भ गेल रहै । तहुमे सङ्कटकाल अर्थात तत्कालिन राजा ज्ञानेन्द्रक समयमे सेनाक टोली अपने सभक सङ्गी बिनोदवाके माओवादीक आरोपमे घरेस’ पकैरके चौरीमे ल’ जा कए गोली माइर देलकै से त बुझले छौ । तकरबाद त गाम आओर अक्रान्त भ’ गेल रहै । साँझ परैते घरके केबाडी आ फटक बन्द भ’ जाइ छलै । नाच, नाटक, रामलीला, नौटंकी, छोक्कडबाजी, महराइ इत्यादि करएमे सेहो ओइ समयमे रोक लगा देने रहै से त तोरो बुझले हेतौ ।

आब एखन त ओहन डर त्रासके अवस्था नइँ छै । सब सहज भ’ गेल छै । विगत किछु साल त राइतो राति फगुआ गेनाइ त सपने जँका भ’ गेल रहै । होरी गेनाइ त औपचारिकतामे सिमित भ’ गेल छलै । पहुलके जँका त नइँ तैयौ आब फेर फगुआ गायन जोर पकैर रहल छै । लेकिन एखन ततेक उत्साह नइँ बुझाइ छै । कियाक त गामक अधिकांस युवासभ बैदेशिक रोजगारीमे चइल गेल छै त किछु युवा परोसी देश भारतके दिल्ली, पञ्जाब, हरियाना, लुधियाना, जमुनानगर सहितक ठाममे मजदुरी कइर रहल छै । आब एखन गाममे प्रौढ आ बुढ–पुरान लोक मात्र बाँकी छै । तैयो ओ सभ फेर होरी गएवाक परम्पराक निरन्तरता देलकै य ।
जागेश्वर, तों बिसरल नइँ न छे । सरस्वतीये पूजाक दिनस’ फगुआ गेनाय प्रारम्भ भ जाइ छलै । सभ साल पुरना डम्फा छराकए आ ढोलकमे गद चढाकए लबैत छेले । भिनसरबाधरि मखन बाबाक दलानमे बैठ कए हरि काकाके हार्मोनियमके तान, भुवन भैयाके  जोगिडा, गडकन भाइके ढोलकके ताल आ गुलठ बाबाके झालर आ रामकुमारके डम्फाके बजेनाइ त कमाल क दै छलै । बीच–बीचमे हम आ तोंहु फगुआ, जोगिडा गबैत रही से बिसैर गेले की ? ओइ समयमे त बिजली लाइन नै न रहै । लालटेन आ डिबियाक रोशनी अपना सबके फगुआ गायनमे अबेर राइतधइर साथ दै छलै । बितलहा उ दिनसब याद छौ कि काठमाण्डूके डान्सबारमे बिसरा गेले । सरस्वतीये पूजाके दिनस’ सब राइत फगुआ गेनाइँ, गामक सीमामे जा’ कए छौंडा स’ ल’ के बुढबाधइर हेंज बाइन्हके सम्मत जरेनाइ (होलीका दहन) । अन्तिम दिन सबगोटे डिहबार थानमे सुमिरन सुमिरन सुमिरन करै छी बाबा हौ डिहबार…गाइबके सुमिरन करैत, समुच्चे टोल घुमनाइँ, बाटमे भेटल सबके रंग अबीर लगेनाइँ । ‘सदा आनन्द रहे एहि द्वारे मोहन खेले होरी हो…’ घर–घरस भेटल चाउर आ’ पैसा–टका दसगरदा काजके लेल भाडा वर्तन, समियाना खरिद होइत छल । जे सबके काम लागै छल ।
अपना सबके मेरिया बाइन्हके गाममे भौजीसबके रङ्ग अबीर लगेनाइँ । लबकी भौजी सबके बाँसके फुचुङ्गा (पिचकारी) स’ निसाना बनाकए रङ्ग खेलनाइँ बहुत याद आइब रहल छौ दोस । रे बिसनपुरबाली भौजीवाला दिन याद कर त मन खराब छलै ओकर, तैयो रङ्ग लगाके भाइग गेल रहियै, अपनासबके खेहारने घुरै छलौ भरथ भैया । तोहुँ बदमास कम नै न छेले ।
खुरहुरियाबाली काकी हाथके बनाएल पुआ तोरा बड्ड निक लागै छलौ । बिसरल त नै ने छे । ओना त आब युवावस्था पार क रहल छे, तैयौ अइबेर गामेमे एकठाम जर भ’ कए फगुआ मनाबी से सोचने छी । फेर अपना सबके याद ताजा भ’ जाय । जीनगीमे सुख–दुःख अहिना चलैत रहै छै । कमाइ त हैते रहतै । तैं बिलम्ब नइँ कइर चाइरियो दिनके छुट्टी ल’ कए घर आबिह’ । अइबेर निक स’ फगुवा मनाएब ।
जागेश्वर, फगुवा अपना सबके सबके सांस्कृतिक पाबैन छियै । सत्यता, भाइचारा, एकता, सदभाव एवम् समानताक सेतु छियै फगुवा । एकरा बचेनाइँ हमर–तोहर सबके कर्तव्य सेहो छियै । अप्पन भाषा, संस्कृति जँ समाप्त भ जेतौ त हमर तोहर पहिचान सेहो समाप्त भ’ जेतौ । तैं पैसे टका सब किछ नइँ छियै । किछु दिनके लेल पैसा टकाके मार गोली आ जते जल्दी होइ छौ गाम जुइम जो ।
हँ, तों त बनौवा जोगिडा गाबएमे माहिर छेले । अइबेर देखबौ तोहर दम ? किया  त काठमाण्डूमे बैठके खौब मौज कएने छे । ओना चिन्ता नइँ कर, हमहु सङ्ग देबौ । अइबेर हम नेता आ जनप्रतिनिधि सबके खेलामेलाके विषयमे जोगिडा बनारहल छियौ । अवश्ये आबिहे, हम तों दुनु गोटा मिल कए जनकपुरबाली, लालापट्टी, गामवाली भौजीसँ मिलब आ होरी खेलायब । जीनगीके नइँ छै ठेकान, होरी खेलिले रे परेमीयाँ…होरी गीत याद छौ न । कहबी छै जे जिबे से खेले फाउग…। तोरा मिलै खातिर मोन औनाय रहल छौ । पुरना सबटा बात यादे छै हमरा ।
बात त बहुत छै, आहेमाहे करैत करैत चिट्ठी सेहो नम्हर भ गेलै । पहिने घर त या । तब विशेष बात हेबै करतै ।
तोहर बालसखा
रामलखन

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