
डा. शेफालिका वर्मा
रोज भिनसर एकटा कविता मोन मे
जनम लैत अछि
दिन होयत ओ कथा बनि जायत अछि
राति तितैत भीजैत
उपन्यास बनि जायत अछि
भोर होइतहि फेर दोसर कविता
फेर प्रक्रिया सैह ,,,,
बहि जायत अछि नहि जानि
कतेक
कविता कथा उपन्यासक धार प्रतिपल
सदि खन जन्म लैत
मृत्युक प्राप्त भ जायत अछि
चाहितो नय बचा पावैत छी कविता के
जेना सागरक लहरि भीजा तीता फेर सागर मे
समा जायत अछि
नहि जानि कतेक कथा कविता
कतेक कहल अनकहल
हमरे मे तिरोहित भ जायत अछि
नहि जानि कतेक कथा उपन्यास
जकरा हम शब्द नय द सकलौं
हमरे संग अनन्त मे समा जायत अछि
व्यथा वेदना सँ पीड़ित होइत रहलौं
कागज पर जन्म नय द सकबाक
एहि पीड़ाक संग
हम अचक्के कहियो चलि जायब
ई वेदना हमरा मुइला के बादो
की चैन लेब देत (((रुरुरु
तखन लगैत अछि एहि जग मे सब नीक
बस हमरा छोड़ि,,,,
काश, शब्द द पबितहुँ अपन कथा कविता कें
विश्व कविता दिवसक अवसरमे लिखल गेल कविता