
नित्यानन्द मण्डल

नित्यानन्द मण्डल
सुखद संयोग केहन जे आइ रविदिन दिनानाथ दिनकर(सूर्याेपसानाक मोहक पद्धतिक) शुभारम्भ अर्थात् भदवरिया रवि आ ‘शशि’(श्याम सुन्दर शशि)क नवकृति ‘जनकपुरधामके इतिहास’पर विमर्श ओहो पुस्तकालय दिवसक पुनित अवसर पर से ज्ञान साधक लोकनिलेल अत्यन्त आह्लादकारी ।
बातके कनेक आओर फरिच्छ करी त जनकपुरक नींव खोजीसँ ढौरल अछि । कहबाक कोनो वेगरता नहि जे सन्यासी चर्तुभुज गिरी आ सन्त सुरकिशोर दास जनकपुरक खोजी कएलनि । तैं ई कहबामे कोनो संशय नहि हएबाक चाही जे खोजक आलम्ब पर टिकल अछि जनकपुरधाम ।
जतए राजा स्वयं हर चलौलनि आ सिराउरमे प्रकाट्य भेलनि सीता, ओ सीताक नगरि जनकपुरधाम जे तत्कालिन मिथिलाक राजधानी जनकपुरधााम ताहिँके खोजव कतेक भरिगर, संवेदनशील काज हएतैक से सहजे अनुमान लगाओल जा सकैए मुदा से धरि धृष्टता कएलनि श्रद्धेय श्याम सुन्दर शशि ।
अध्ययन, अनुसन्धान आ अन्वेषणक बास्ते इतिहासक महासागर हथौरियादेलासँ बहुत कम रचना, सामाग्री, छिटफुट लेख, आलेख, पाँतरछितर पुस्तक, पुस्तिका अभरैत अछि जनकपुरक सन्दर्भमे, एहनमे त नयाँ शिरासँ किछु लिखव, पढब आ बुझव ओतबे कठिन । जखन की समृद्धशाली पुस्तकालयक विरासत जनकपुरधाम लग होइतो, निठाहे पुस्तकालयक आभाव ।
जीबठ चाही श्याम भैय्याके एहिकाजकेँ कनेठलनि । वस्तुतः समृद्धशाली सांस्कृतिक सम्पन्नता–सत्ता आ गौरवशाली इतिहास होइतों दस्तावेजीकरण नहि भेने पुस्ताकाकार नहि भेने केहनो सम्राज्यक सांस्कृतिक किंवा ऐतिहासिक सत्ता सेहो छिना जाइछ, ओहिठामक लोक सुकुमबासी जकाँ लालपूर्जा विहिन भऽ जाइछ । तैं अपन इतिहास लिखबाक लेल हमरालोकनिकेँ साकांक्ष रहबाक चाही ।
छिडिआएल एहि ऐतिहासिक अंश, उपअंशकेँ, तथ्य समेटवाक, सहेजवाक आ जतनसँ रखबाक काज श्याम भैय्या कएलनि अछि अपन विवेकसँ, तैं ई पुस्तक अपनेमे विशेष भ सकैत अछि ।
डंकाक चोट पर कहल जा सकैए जे एहिसँ पूर्व एहि तरहक काज नहि भेल छैक से बात नहि । मगर मैथिली भाषामे एहि तरहक गँतगर पुस्तक जेकाँ पोथी भेटव दुर्लभेसन अछि । एहि प्रसँगमे किछु स्मरण कर चाहैत छी ।
जनकपुरधामक सन्दर्भमे रामभरोस कापडि भ्रमरक जनकपुरधाम र यस क्षेत्रका सांस्कृतिक सम्पदा, डा. राजेन्द्र विमलक मिथिला गौरव, इतिहासविद् शिवेन्द्र लाल कर्ण, नारायण प्रसाद रिमालक, वृहत्तर जनकपुरक्षेत्र विकास परिषद्द्वारा प्रकाशित अनुसन्धानमूलक आलेख, प्रतिवेदन, कार्यपत्र, मदन रिमाल, बासुदेव लाल दास, शैलेन्द्र नारायण मल्लिकक जनकपुरको इतिहास, महेन्द्र मलंगियाक मै जनकपुर हुँ, माखन झाक जनकपुरक इतिहास, रिचार्डवर्घटक द हिस्ट्री आँफ जनकपुरधाम आ एहिठामक सृजनशील साधुसन्तलोकनि आदि बहुत नाम आ कृति अछि, तिनका सभके हम नमन करैत छियनि जे जनकपुरक इतिहासक पर्ती परातके हरिअर किचोर करबामे योगदान देने छथि, दैत आएल छथि । बहुत गोटेक नाम जीँहपर अछि मुदा लिखैतकाल ठोरसँ नहि बहरा रहल अछि, नाम नहि उल्लेख करबा कारणेँ क्षमा चाहैत छी । विशेष शशीक कृतिक जनकपुरधामके इतिहास नामक पुस्तक स्रोत सामाग्रीमे सेहो उल्लेख अछि, देखल जाए ।
साहए त जनकपुरक धरती पर जनकपुरक इतिहासक पर्ती, पाँतर उजाडसन लगैत छल । जाहिमे शशीक ई कृति एकटा नव अध्याय, ईट आ ई कहुँ जे एकटा कित्ता, एकटा किआरि बनौलनि अछि जाहिमे अपने लोकनिक सुक्ष्म विश्लेषण आ स्वस्थ्य विचारसँ ओ किआरि हरिआओत आ ई जनकपुरधामक लेल एकटा सम्बलक काज करत । शशिक ई कृति मात्र अन्तिम सत्य नहि छैक, एहिसँ आगू आओर परिपक्व, युगीनचेत आ साक्ष्यप्रमाण सहित हमरालोकनि आगू आवि सकैत छी ।
ओना कहल जाइछ जे लडिकोरी आ सर्जक एक्किहि सन होइत अछि । दुनूक डाँर बहुत कमजोर होइत छैक । मुदा जखन विधकरी, अडोसिया, परोसिया, अपन हितवन, सरकुटुम्ब जखन नव शिशुकेँ दुलारि दैत, नीक जेकाँ जाइतपिच दैत छैक त लडिकोरिक मन बारह अन्ना हल्लुक आ हिआ जुरा जाइत छैक । तहिना शशिक कृतिके सेहो अपने लोकनि जखन पढिक उचित सल्लाह, सुझाव, मार्गनिर्देशन देवनि त जरुर हुनको मन ऊर्जास्वित, प्रफुल्लित, प्रोत्साहित हएतनि ।
से अपनेसभक विचार आमन्त्रित अछि । ओ लेबाक लेल हमरालोकनि अपने लोकनि बाट जोहिरहल छी । आइ बेरिआ तीन बजे, मैथिली विकास कोषक नवनिर्मित भवनमे । आउ, अपने लोकनिक व्यग्रतापूर्वक प्रतिक्षारत् छी । वृहत, विहंगम जनकपुरधामक सन्दर्भमे शशिक ई कृति जनकपुरधामके इतिहास भलेहिँ सूर्यक आगा दीप देखाएबसन हएतैक मगर एकर रौशनी चहुँदिश जरुर छिडिआओत से विश्वासकसँग हमरालोकनि अहाँसभक प्रतिक्षामे पलक विछौअने छी । लेखक मण्डल पत्रकारिता, साहित्य एवम् अध्ययन अनुसन्धानमे सक्रिय छइथ । स