मोन पड़ैत छथि भुवनेश्वर पाथेय


नित्यानन्द मण्डल
(अगस्त,1945–28 सितम्बर,1991) श्रद्धांजलि !

मैथिली पत्रकारिता आ कविताक एक अलग विशिष्ट मानक स्थापित कएनिहार स्व. पाथेयकेँ सादर नमन ।

अमर काव्य शिल्पी आ अक्षरजीवी पाथेयक मूल नाम भुवनेश्वर प्रसाद साह छनि । हिनक जन्म ई. सन् १९४५ २८ सितम्बरक जनकपुरधाम, नेपालमे भेल छलनि । तैं आइ हिनक जन्म–जयन्ती छनि । सन 1991 September 24 अर्थात् २०४८ आश्विन ८ गतेक ४६ वर्षक उमेरमे क्यान्सर उपर विजय पतक्खा नहि लहरा सकलाह, साहए त अल्पायूमे कालक क्रूर हाथ हमरालोकनिक वीचसँ उठा लेलकनि । तैं हार्दिक श्रद्धा–सुमन अर्पण करब कोना विसरि सकैत छी ।

नेपालक आधुनिक मैथिली कवितामे ‘भुवनेश्वर पाथेय’क नाम अग्रणीय रुपमे इतिहासक पन्नामे स्वर्णाक्षरमे अंकित अछि । जीवन आ जगतक विषयकेँ बिम्बक माध्यमसँ नव–नव जादुगरी प्रयोग करैत रचनाकेँ यथार्थक धरातलपर रेखाङ्कन करबाक निजी विशिष्ट शैलीक कारणेँ मैथिली साहित्याकाशमे पाथेयक काव्य ज्वज्वल्यमान तारा जकाँ सदैव चमकैत रहैत अछि ।

गद्य आ पद्य दुनू पर बेजोड कलम चलैत छलनि ।आ से मात्र छियालीस वर्षक अवस्थामे ‘हमरा नहि टोकू'(कविता), ‘संकेतक आकाश’ (दीर्घ कविता), ‘क्षितिजक पार सँ’ (कथा), ‘मुनिया'(खण्ड काव्य),’कंचन’ (उपन्यास) आदि हिनक महत्वपूर्ण कृति सभ छनि ।

मैथिली पत्रकारिता जगतक एकटा उद्भट नाम सेहो रहथि स्व. पाथेय । हिनक कविता–कृति ‘पघलैत बरफ’ आ ‘चुल्ही’ प्रकाशित छनि । मैथिली आ नेपाली भाषामे हिनक अनेको पाण्डुलिपि प्रकाशनक बाट ताकि रहल छनि । स्व. पाथेयकेँ मैथिली साहित्यक विशिष्ट सेवाक लेल वि.सं. २०५२ सालक वैद्यनाथ–सियादेवी मैथिली पुरस्कारसँ मरणोपरान्त सम्मानित कएल गेल छलनि ।

काव्य शिल्पी पाथेक कविताक एकटा बानगी देखल जाए
चुल्ही जारनि नहि खायत
छाउर नहि बोकरत आइ
किएक तँ?
किछु एकचारी खाऽ लेलकै’
चारो छरेनाइ जरूरी छल
नहि तँ, एहि बेरक बरखा–बुन्नीमे
मेघ चारे दने सनिया जाइत
जे बाँकी छल बौआक फीसमे चलि गेलै’
हमरे जकाँ मुरख नहि रहौक, छौड़ा
घड़ेरी नहि बिकाउक घिसुआ जकाँ
ओइ सुरीबाकेँ देहपर बज्जर गिर जाउक
जे देत किछु आ छाप लगाओत‘
गलि जाउक ओकर देह
तैं गामसँ पड़ाए पड़लै‘
एखनो सालमे एक–दुटा पड़ाइते छै
पंजाबक कमोट बिदागरीमे नुकाऽ गेलै
सेहो भेलै जमायकेँ पुराने धोती
लाल–लाल, गोल–गोल छापल
लाठीक हुरसँ
आ छौड़ीकेँ भेंटलै फाटले नूआँ–फट्टा
की करिऔक?
एहिना चलत‘?
डण्डी–तराजु छीट कपड़ा पर ससरि गेलै
आउ सुत रही आब
कऽ लिऽ आइ एकादशी
जाए नहिं पड़तै आब, काशी।
आ अन्त्यमे फेरसँ हुनकाप्रति अश्रुपुरित विनम्र श्रद्धाञ्जलि !

 

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