राजविराज । बितल सालक जँका अहु साल मधेश सहित पूरा देशमे श्रद्धा, भक्ति आ उमंगसँ चाइर दिनक छैठ पाबैन मनाएल जा रहल अइछ ।
सोम दिन साँझमे अस्ताएबला सूर्यके अर्घ द कए ब्रतालु लोकनि पूजा करबाक तयारीमे छइथ । मङ्गल दिन भोरे उगएबला सूर्यके अर्घ द कए विधिवत रूपसँ ई पाबैन सम्पन्न हएत । गाम–टोल आ शहरक पोखरि, तलाव आ नदीक घाट पर केराक थम, बाँस, अशोकक ठाइर आदिसँ घाट सभके सजाओल गेल अइछ । छैठक पूजा–अर्चना करबाक माहौलसँ सगरो मधेश उत्सवमे रंगायल देखा रहल अइछ ।
कातिक शुक्ल पक्षक चतुर्थी तिथि सँ शुरू होइत पाबैन पर्व ‘नहाइ–खाइ’ सँ आरम्भ होइत अइछ । ओ दिन ब्रतालु लोकैन पोखैर वा नदीमे नहाइ शुद्ध भऽ चोखा भोजन करैत छइथ । ओइण् दिन सँ माछ, माउस, लसुन, प्याज जेकाँ चीजके त्याग कऽ ब्रत लैत छइथ ।
पंचमीक दिन ‘खरना’ होइत छै । दिनभइर निराहार रइह साँझमे नहायके नव चुल्ही पर सक्कर द कए खीर बनाइ चन्द्रमाके अर्पण करैत छइथ । खीर आ पाकल केला प्रसाद रूपमे ग्रहण करबाक बाद पूर्ण ब्रत सुरू होइत अइछ ।
तेसर दिन ‘षष्ठी’ मे गहुँम आ चाउरक चिकससँ ठेकुआ, भुसुवा, पेरुकिया जेकाँ परिकार बनाओल जाइत अइछ । पूजा सामग्री एकदम चोखो आ शुद्ध रहबाक चाही, एहि कारण महिलासब बहुत सावधान रहैत छइथ ।
छठी मइया केँ ठेकुआ, केतारी, केला, नरियरल, टाभ नेमो, मुरइ आदिके अर्पण करैत सन्तानक दीर्घ आयु, परिवारक सुख–समृद्धि आ रोग–ब्याधिसँ मुक्ति लेल कामना करैत ई पर्व बड़ श्रद्धा आ नेहसँ मनाओल जा रहल अइछ ।






