मिथिलामे कुशी अमावश्या


महोत्तरी, ७ भादबः पूर्वीय वैदिक परम्पराके अनुयायी हिन्दू मैथिल आइ ‘कुशी अमावश्या’ मनाइब रहल अइछ । प्राचीन मिथिला क्षेत्रमे वैदिक मन्त्र उच्चारण करैत आजुक दिन कुशके घरमे राखलासँ ई शुभकाज आ पितृकाजक लेल महत्त्वपूर्ण मानल जाइत अइछ ।

हिन्दू परम्पराके शुभ काज आ पितृ काजमे कुश आवश्यक होइत अइछ । तँए भाद्र कृष्ण अमावश्यक दिन सालभैरक लेल कुश जमा करबाक परम्परा अइछ । आजुक दिन कूल पुरोहित अपन यजमानके घरमे शास्त्रोक्त विधिसँ अभिमन्त्रित करा क उखारल गेल कुश दलानमे राखैत छैथ । यद्यपि मिथिलामे घरक प्रमुख व्यक्ति अपनेसँ ब्रह्ममुहुर्तमे कुश उखाइर क राखैत छैथ ।

कुश उखारए समयमे हिन्दू परम्परामे अइ मन्त्रके उचारण कएल जाइत अइछ:

‘विरिञ्चिनां सहोत्पन्नः परमेष्ठी निसर्गतः ।
नुद सर्वाणी पापानी दर्भ स्वस्तिकरो भव ।।
पूर्व मन्त्रं समुच्चार्य ततः पूर्वोतरामुखः,
हूँफट्कारेण मन्त्रेण सकुच्छित्वा समुद्धरेत ।।’

अइ मन्त्रके उचारणसहित उखारल गेल कुश एक सालधैरके शुभकाज आ पितृकाजक लेल पवित्र होइत अइछ । हिन्दू वैदिक परम्परामे प्रत्येक शुभ काज या पितृ काजक सङ्कल्प कुशके बिना सम्भव नै रहल राजकीय संस्कृत माध्यमिक विद्यालय मटिहानीके कर्मकाण्ड विषयके शिक्षक शोभाकान्त झा बतौलैन । कुशके औँठी धारण कएलाके बाद मात्रे कोनो भी व्यक्ति पितृकाज आ शुभकाजके कर्ता भ सकबाक परम्परा अइछ । तहिना वैदिक काजक लेल जलमे डुबाएल कुशके टुक्रा, जँ, तीलसहित कएल गेल सङ्कल्पके बाद मात्रे काज सुरु होइत अइछ ।

कुशी अमावश्याक दिन घरक दलान या कोनो पवित्र स्थानमे राखल गेल कुशक मुठा विघ्ननाशक आ कल्याणदायक हेबाक विश्वास अइछ । शास्त्र अनुसार विधिपूर्वक आजुक दिन घरमे राखल गेल कुशसँ घरक भौतिक सम्पत्ति आ परिवारक रक्षा करबाक विश्वास सेहो रहल अइछ ।

आजुक दिन मैथिल परम्परामे दिवंगत बाबुके श्राद्ध करबाक चलन रहल अइछ । रासस

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