हरियर गाछ आ’ लाल फूल


डा.राजेन्द्रप्रसाद विमल
घुमैत–घुमैत हम आ’ सीरीपरसाद पाठशाला आगा“क विस्तृत मैदान पार कए पुरुब दक्षिण कोनमे चलि आएल रही– पुलिसचौकी लग । एहिमे करड़ल करड़ल मोंछबला एकटा पुलिसबा रहै छै । नामो छै सिंह जी, देखहुमे बाघे । थानाक पाछामे बाँसक बत्तीस’ घेरल फुलवारी छै । गेना, गुलाब बेली, जूही रंग–विरंगक पूmल लुबधल छै । मोन हुअए जे तोडि़ली मुदा बघबाक डर छल । हम आ’ सीरीपरसाद विस्मयविमुग्ध भेल एकपतियानीस’ लागल हरियर–हरियर फूलक गछुली आ’ लुबुधिकए फुलाएल रंग–विरंगक फूल टकटकी लगा देखि रहल छलहु“ । केना हेरागेल रही हम दुनू !! गुलाबक पूmलपर एकटा तितली आबिकए बैसि गेल ।
सीरीपरसाद मुस्कुराएल–‘‘रओ, एगो बात कह त’ ।’’
‘‘की ?’’
‘‘रओ गुलाबक गछुली हइ हरियर कचोर आ’ फूल हइ लाल टुहटुह .. ई केन्ना भेलइ ? ’’
ई केन्ना भेलै ? .. अनेक दार्शनिक प्रश्नसभ सोचैत–सोचैत हमरा दुनूके चक्कर आबए लागल । जेना संसारके सभ फिलोसोफरके बाप हमही दुनू रही । कोनो मास्साएब एकर जबाब नइ“ बुझि सकलाह ।
ननुओ ई प्रश्नकें टारि गेल छलाह , ओहि राति ।
गामस“ दक्षिण एकटा आम्रकुंज आ’ तकर बीचमे एकटा आश्रमनुमा भवन । आगा“मे दूर–दूरधरि पसरल मुक्त मैदान । आश्रममे नियमित दिनचर्याक पालन करैत गुरुदेव आ’ अनुशासित शिष्यमंडली, विशुद्ध गुरुकुल छल बहुअर्वा पाठशाला तहिया ।
सन् १९६१ ई. क आसपासक घटना होएतैक । हमरा पूज्य ननू पहिने–पहिने अपनासंगे बहुअर्वा लएगेल छलाह । तहिया बहुअर्वा पाठशालामे मिडिल धरिक पढाइ होइत रहैक । फूसक ओहि आश्रमनुमा भवनक एकटा कोठलीमे पूज्य ननू आ’ हमरा लेल चौकी छल, जाहिपर साधारण सतरंजी आ’ जाजिम बिछाओल छलैक । दोसर कोठलीमे तीन–चारि गोट वटुक (विद्यार्थी) रहैत छलाह । हमरा किछु अपन समवयस्क छात्रलोकनि मोन पडैÞत छथि–रामऔतार, सीरीपरसाद, महिन्दर साह, नन्दकुमार…। किछु गुरुजी मोन पडैत छथि–बूढा मास्साएब, मधुरी मास्साएब, बलदेव मास्साएब…
ई सभ एक–एकटा कथाक पात्र थिकाह । मोन पडैÞत अछि.. प्रातः काल ब्रहममुहूर्तमे उठब, गुरुजी (पूज्य ननू)क संग अकौरा ठाकुर पोखरिपर जाएव… शौच करब.. दतमनि काटब, मुँह धोअब, कसरत करब, अपन–अपन कपड़ा धोअब, स्नान करब, अकौरा ठाकुरक दर्शन करब, स्कूलपर घूरब, गुरुजीके“ घेरिकए बैसब आ’ अपन–अपन पोथी पढब ! ….कत्तहु कोनो दिक्कति होइ छलै त’ ननू अत्यन्त स्नेहपूर्वक समझबैत बुझबैत छलथिन्ह ।
ननूकें कनियों खौझाहटि नहि होइन्ह । विद्यार्थीसभके“ एतेक सिनेह ननूस“ जे सदिखन सभ लेपटाएल रहैत छल । केयो पएर जा“तिरहल अछि, केयो माथ ससारि रहल अछि, आ’ ननू अंग्रेजीक अनुवाद सिखा रहल छथि, गणित पढा रहल छथि, ग्रामर बुझा रहल छथि । एहन शिक्षक आब कतए भेटत ?
कतए भेटत एहन पूर्णअनुशासित आ निष्ठावान छात्र ? कतए चलिगेल ओ अभिभावक जे गुरुसेवामे आरुणिक आदर्श पालन करैत अपन संतानके“ देखि दुःखी नहि होइत छल, गर्व करैत छल ।
डा. मोहम्मद् दीन हमरा दूटा खिस्सा कहलैन्हि । कोनो मोगल बादशाहके बेटा मदरसामे पढैÞत छल । एक दिन बादशाहक अचानक सवारी मदरसामे भेलैक । देखलक–शाहजादा गुरुक पएरपर पानि ढरा रहल छल आ’ गुरु पएर पखारि रहल छलह । बादशाह समधानिकए एक थापड़ बेटाक कनपट्टीपर देलथिन्ह । गुरु (उस्ताद) अकचकएलाह.. डरे थरथर का“पय लगलाह । कहलथिन्ह–हजुर, गलती भेल । बादशाह कहलथिन्ह–नहि, गलती शाहजादास“ भेल छैन्हि । एक हाथस“ ओ पानि ढ़ारि रहल छलाह आ’ दोसर हाथकी लुल्ह भ’ गेल छलैन्हि जे गुरुक चरण पखारवाक पुण्य (शबाब) नहि ल’ सकलाह ? ’’
दोसर खिस्सा कहलैन्हि जे कोनों बादशाहक बेटा मदरसामे पढैत छल । जखन पढाइक अन्तिम वर्ष छलै, गुरुजी बडा गौर स’ राजकुमारके देखि रहल छलाह । ओ पढाइमे मग्न छल । शील स्वभाव उच्च कोटिक छलै । ओ पूर्ण अनुशासनक पालन करैत छल । गुरुजी उठलाह आ’ बिना कोनो कसूर राजकुमारक गालपर झनझनौआ चाट खीचि लेलथिन्ह । राजकुमार शिर झुका लेलैन्हि, किछु बजवाक हिम्मति नहि भेलैन्हि । बीस वर्षक पश्चात् जखन ओ बादशाहक गद्दीपर बैसलाह, हुनकर दिमागमे बेर–बेर एकटा प्रश्न उठैन्हि–’’ ओहि दिन गुरुजी हमरा बिनसेतीमे किए मारलैन्हि ?’’ ओ तामदान पठा गुरुके“ सम्मानपूर्वक राजमहल बजओलैन्हि । गुरु अएलाह । ..बादशाह सिंहासनस’ उठि गेलाह, शिर श्रद्धास“ झुकल छलैन्हि । गुरु देखलैन्हि जे बादशाह किछु पूछए चाहैत छथि, मुदा बाजि नहि पबैत छथि । गुरु मुस्कुरएलाह–’’ बादशाह,अहा“ हमरा एही दुआरे ने बजओलहुँ जे अहाँ जानए चाहैत छी हम बीस बरख पहिने, मदरसामे अहाँकें बिना अपराध किए मारने छलहुँ ?
..अहाक बादशाह होएब निश्चित छल ।.. हम अहाँके“ तालीम देबए चाहैत छलहु“ ।..बिना कसूर अहाँके“ एक चाट मारलहुँ त अहाँ बीस बरखधरि बेचैन रहलहुँ । बेकसूरियाकें जँ दण्ड देल जाइत छैक त ओकर हृदयपर की गुजरैत होएतैक से अनुभव करएवाक लेल हम अहाँके“ थापड़ मारेने छलहु“ । हम जनैत रही अहाँ बादशाह भेलाक बाद ई प्रश्न हमरासँ जरुर पूछब ।.. हमर उद्देश्यपूरा भेल । ठीके त“ ने कहै छल अंग्रेजसभ ‘spare the rod and spoil the chlid’ ।
आदरणीय रामपुनीत ठाकुर हमरा अपन पिताक सहोदरे भाय बुझाइत रहथि । ननूसँ कनियों कम्म ने ।..लेकिन, लादूबाबूक मिठाइक दोकानमे फुसला–फुसला ओतेक रसभरी किए खुआदेलैन्हि जे हम निछोधाह भ’ कानए लगलहु“ आ’ हुनके कोरामे सूति रहलहुँ ।…वियाह पंचमीमे सत्यनारायण सर्कस देखए आएल रहथि, हमरे सम्हारएमे समय चलि गेलैन्हि ।
कतेक अपनत्व रहैक समाजमे । डोमो ब्राह्मणक काका–नाना होइत छलाह । भावनात्मक बन्धनमे कोना बान्हल छल समाज ….कोनो बच्चा पढाइ छोडि घुच्चीपिलन्त, खपटा–खपटा, अंडी–अंडी वा गुल्ली डंडा खेलाइत छल, त कोनो बुढबाक अधिकार छलैक जे कान पकडि़कए दू चाट मारि देअए । आ’आब ? समाजक बच्चा अपने बच्चा होइत छल । बुढ़बासभक देल कतेको भुरहा पाइ जम्मा कएने रही हम ।
मोन पडैÞए बहुअर्वाक किसनामठीक नाच, राति–रातिभरि नाच चलैक । गामेक नाच मंडली रहै ।
बसुरियाबला बँसुरी बजबैक–बाँसक पोर सोझे काटिकए बनाओल बँसुरी, जेहन कृष्णजीक हाथमे रहैत अछि ।
मजीरा खनकै । तबलाक तकधिन–तकधिन गुमकैक । कृष्णलीलाक अनगढ, अव्यवस्थित संवादसभ बजैक–” हे रुकमिनी, हम गोपिनसब जओरे रङरभस करइछी त’ तोहर कोढ़ ककरी नाहिंत कइला फटइ हओ ?” ताहिपरस“–बीच–बीचमे रधवाक नाच–” मुँह लटका हमरा बड़ा दुख देलकइ, हम बदला सधेबइ गे बहिना….”
विपटा कहै–‘केन्ना के ? केन्ना के ?? केन्ना के ??? नटुआ ब्रेसियर तरमे गेन ध’ क’ बनओने अपन नकली छातीकें हिला क’ कहै–’ एन्ना के, एन्ना के, एन्ना के ।’ लोक लहालोट होइ । भीतरमे गुदगुदी लगें । विपटा रंग–विरंगक फकड़ा सभ सुना लोकके लोटपोट क’ दै । एकटा विपटाक पाछासँ धोतीक ढेकांबाटे चारिटा अंडा कोना फटाफट खसलै से एखनो हमरालेल छगुन्ताक गप्प थिक ।
केहन सहज–सरल, शान्ति आ’ प्रीतिस“ लबालब भरल, ग्राम्य जीवन रहैक वहुअर्वाक ! देवतासभ स्वर्ग चलि गेलै, दैत्यसभ बस्तीके“ दखल क’ लेलकै । आब त“ ‘जनकपुर एक्सप्रेस’ मे खाली खूने–खुनामक समाचार छपैत अछि गामक ।
किसुनलीला देखिते रही कि गरभू बुढ़बा बजब’ आएल–“चलु बौआ, माटसैब बोलबइ हय । ….. बडी राति हो गेलइ ।” बुढबा मौगी जकाँ डाड लचकबैत ल’ गेल हमरा–डेरामे । गरभू रहै मोङमेहरा । मौगी जेकाँ बजैक । कहैक जे परसौती भेल छी । गाममे ककरो जनम–शौच होइक आ’ आदगुँड अबैक त माङिकए खाइक । कहैक, डाँड बन्हाएत तब न काममे सकब , डेरापर गेलहु“ त ननू कहलथिन्ह– गरभू, बौआके“ तेल लगा दियौ ।” गरभू तेल लगओलक । ननू, बुढ़बा मास्साएब आ’ रामपूनित काका बतिआइत रहलाह ।
तरौनी गामक एकटा साइन्स सर रहथिन्ह । संस्कृतक चूनल–बीछल श्लोक सभक मर्म बुझाबथि । नेपाली शिक्षक रोहिणी खतिवड़ाक एकटा कविता बड्डनीक लागल रहए–“ अनि मोती फुल्दछ ।’ तात्पर्य रहैक– जत’ किसान मजदूरक पसेनाक बूँद चुबैत छैक, तत्तहि मोती फुलाइत छै ।
ननू ओहि क्षेत्रमे शिक्षाक मसीहा छलाह । परोपट्टामे शिक्षाक मसाल नेने घूमैत छलाह । पाठशाला–निर्माणक लेल, केयो खड़ अनैत छल, केयो बाँस । परोपट्टाक गामसभसँ हेँजक हेँज नंगघडँग चटियासभ काँखतर बोरा–सिलेट नेने स्कूलमे जूटि रहल छल । ने भरिदेह अंगा, ने पएरमे चप्पल–जुत्ता । नाक पोछि–पोछि पखुराभरि पोटा लेभरओने । ननूसभके दुलार करथिन्ह, स्नेहस“ सिखबथिन्ह । ननू जेना ओहि क्षेत्रमे एकटा शैक्षिक क्रान्तिक आरंभ कएने छलाह ।
ओहि दिन शुक्र रहैक । पाठशालाक आगा मैदानमे जनमल छिमरा सभ उखरबाक दिन रहैक । हमरासभक फौज मोर्चापर डटल छल । ननू स्वयं फाँड बन्हने छिमरा उखारि रहल छलाह । बड्ड मोन लगैत छलै । ताबत गामक सभसँ बेसी पढ़ल–लिखल विद्वान श्रीरामनारायण मण्डल जी जुमलाह, जे एम.ए.(राजनीति शास्त्र) मे काठमाण्डू पढ़थि रहथि ।
हमरा दिस आङुर देखबैत कहलथिन्ह–‘अई बौआके किए लगओने छिऐ ?
ननू कहलथिन–“स्वावलम्बन कोना सिखतै ? गाँधीजी त“ पैखानाक टीन माथपर उघैत छलथिन्ह, तखन ने महान् भेलथिन्ह ।” मुदा हम अलबटाहक अलबटाहे रहि गेलहु“ । ओहि दिन खूब साबुन लगा–लगा सभगोटे (ननू आ’ विद्यार्थीसभक फौज) अकौरा ठाकुर पोखरिमे नहएलहु“ ।
ननू किछु बच्चाकें पाँखुर पकडि़ हेलए सिखओलथिन्ह । अपन–अपन कपड़ा खिचने छलहुँ । टीनोपालक जमाना रहै । कपडा सभ झकझकएबाक लेल कपडा सभमे टीनोपाल देलिऐ । सुखा गेलापर लोटामे आगि राखि गरम लोटासँ कपड़ा सभपर इस्त्री कैलिऐ । फेर सभ कपड़ाके“ सिरमामे राखि जाँति देलिऐ ।
साँझखनक’ कम्पीटीसन होइक । छाउर आ’ भुस्सासँ लालटेमक सीसा चमकएबाक कम्पीटीसन । ननू जज रहथिन्ह । राम अओतार बाजी मारि गेल । महीन्दर गामसँ दही, केरा आ’ पेडा अनने छल । सभकें एक ठाम सानि क’ जे खायमे लागल से की कहू ? मुदा, कतेको बच्चाक मुँहमे पानि आबि गेलैक । सभ हमरासभक जलखइ दिशि टुकुर–टुकुर तकै छल । ओकरासभक आँखि एखनो मोन पडैत अछि ।
एकटा विद्यार्थी छल जे भूत–प्रेतक अनेक खिस्सा सुनबैत छल । नाम नहि मोन अछि । ओ कहैत छल जे कन्हाइ साहुके गाछीमे भूत रहै छै । स्कूलक आगाँमे बिचला रातिमे लहास उठै छै । ओ अपना आँखिस“ देखने अछि । महीन्दर कहलक “चलू त अपनासभ ओइपार ।” हम दुनू मैदानक ओइपार जाइत रही ।
हमरा आगाँमे जे पड़ैत छल डिब्बाडुब्बी तकरा गेन जेका“ सट मारिऐ । अन्हारमे एकटा किच्छु बुझाएल । मारलिए सट । बापरे, ओ त“ फोँफोँ करए लागल । लोक लालटेन ल’ क’ दौगल त देखलिऐ–सुच्चा गहुंमन फेँच कढ़ने ठाढ़ अछि !! एखनो रोमांच भ’ अबैत अछि । बहुअर्वा पाठशालामे बिताओल हमर जीवनक क्षण अविस्मरणीय थिक । कहि ने कतेक संस्मरणसभ जूटल अछि ।
हम सोचि रहल छी जे आब जँ सीरीपरसाद भेटैत त पुछितिऐक– ‘भाइ, बहुअर्वा स्कूलमे कतेक नव हरियर गाछ जनमलैक अछि आ’ कतेक फुलएलैक अछि नव लाल फूल देखलहक हँ ?’ रोहिणी गुरु ठीके कहने रहथिन्ह – जँ पथराहो माटिपर श्रम–स्वेद बहाओल जाइत अछि त“ उगैत छै हरियरगाछ आ’ फुलाइत छै लाल फूल । जादू पसेनाक ठोपक छै, विज्ञान चाहे जे कहौक ।
(वरिष्ठ साहित्यकार प्रा. विमलजीद्वारा लिखल गेल संस्मरण पत्रकार एवम् साहित्यकार नित्यानन्द मण्डलजीक फेसबुकसँ लेल गेल अइछ ।)

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