यमपञ्चकक प्रथा आ प्रार्थना


सन्तोष कुमार चौधरी

विक्रम संवत् २०८२, कार्तिक कृष्ण आ शुक्ल, दुनु पक्षक योगसँ जुडाओल ‘यमपञ्चक’ एहि वर्ष आजु आरम्भक भगेल। एकर आरम्भ आजु यमराजकेँ दीप देखाक’ आ समापन चित्रगुप्त पूजाक विसर्जन क’के होयत। यमपञ्चक कार्तिक कृष्ण पक्षक त्रयोदशी, चतुर्दशी आ अमावस्या तथा शुक्ल पक्षक पडिवा आ द्वितीया तक पडैत अछि। पञ्चकके तात्पर्य पाँच दिन होयतहु तिथिक क्षय व वृद्धिक कारण दिनक संख्या घटबढ भसकैत अछि। मुदा पूजन दिवसक संख्या पाँचमे घटबढ नहिं होइत अछि। पाँच दिवसीय पूजाक तात्पर्य यमपञ्चक एक आ अनेक देवी-देवताक पूजाक सम्भरण थिक। एक देवताक रूपमे यमपञ्चक यमराजके पूजा थिक आ अनेक देवी-देवताक रूपमे यमपञ्चक यमराज, हिनक वाहन काग, भैरवक प्रतिरूप श्वान, सुरभि स्वरूपिणी गाई, औषधक देवता धन्वन्तरी, भण्डारक देवता कुबेर, प्रलयको देवी कालरात्री, समृद्धिक देवी महालक्ष्मीक पूजा होइत अछि।

परपावनि संस्कृतिक हिस्सा थिक। पावनिसबक अपन-अपन मूल्यमान्यता आ व्यवहार छैक। प्रत्येक पावनिक आवरण चर्या आ अन्तस्थ मूल्य थिक, जे जीवनक समृद्धिक लेल सहायक होइत अछि। तैं पावनिसब मनुष्यक मानसमे बैसल छैक।

यमपञ्चक पौराणिकताक तलसँ प्रादुर्भाव भेलाक कारणे एहिमे जीवनक अनेक रहस्य गुप्त अछि। यमपञ्चकक आवरण पर जे क्रियाकलाप होइत अछि ओ विभिन्न देवी-देवताक पूजा थिक, जकरा लोक ओहि देवी-देवताकप्रति अपन कर्तव्य मानैत अछि मुदा एहि कर्तव्यक गहराईमे नहि उतरैत अछि।

मूलत: यमपञ्चक की थिक?, पाँच पावनिक सम्भरण किएक कएलगेल? मानव जीवनक लेल किएक सहायक मानल गेल? एहन जिज्ञासा स्वाभाविक मात्र नहिं आवश्यक सेहो अछि।

जन्म आ मृत्यु प्राकृतिक चक्र थिक। जन्मसँ जीवन प्राप्त केलासन्ता मनुष्यकेँ मृत्युक शाश्वत ज्ञान होइत अछि। मृत्यु अटल छैक आ प्रकृतिक एहि व्यवस्थापर प्रहार नहिं क’सकत। मुदा एहि चक्रक रहस्य बुझिगेलासँ जीवन सुखद् भ’सकैत अछि। जीवनके इएह दोसर भाग मृत्यु पर बोध आ शोधलेल यमपञ्चकक ओरियान कएलगेल अछि।

यमपञ्चकक सम्पूर्ण पर्व यमराजसँ सम्बन्धित अछि।मृत्युक देवता यमराजक प्रसन्नताक लेल यमदीप प्रज्ज्वलित करैत लोक यमपञ्चकक उद्घोष करैत अछि। यमराजक आराधना कैर हुनक आशीर्वाद प्राप्त करब जीवनक परम उद्देश्य मानलगेल। जीवनमे यमराजक आशीर्वादक अर्थ की छैक आ इ किएक आवश्यक छैक से कठोपनिषद्क ‘यम-नचिकेता’ संवादसँ प्रष्ट होइत अछि।

यमराज-नचिकेता संवादके अनेक आयाम छैक। मुदा एकर केन्द्रीय विषय अविद्यासँ मुक्ति आ ब्रह्मविद्याक प्राप्ति छैक। नचिकेताके ब्रह्मविद्याके बारेमे प्रबुद्ध करै लेल यमराज श्रेय आर प्रेय जीवन मार्गके अन्तरके व्याख्या करैत छथि, जेकरा विद्या आ अविद्याके नामसँ जानल जायत छैक। श्रेय मोक्ष दिस लऽ जाइत अछि, जकरा ज्ञानी लोकनि चुनैत छथि। तथापि नीरस बुद्धि योग आ क्षेम (सांसारिक सुख)के लेल प्रेय मार्ग चुनैत छथि, जे जन्म-मरण के चक्र में फंसल रहैत छथि। “श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ सम्परीत्य विविनक्ति धिर:। श्रेया हि धिरोऽभि प्रेयसो वृणीते प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते।।”

ब्रह्मके ई ज्ञान ने तर्क सँ प्राप्त कयल जा सकैत अछि आ ने इन्द्रिय द्वारा। “नैषा तर्केण मतिरापनेया, प्रोक्तान्येनैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ। एष सर्वेषु भूतेषु गूढोत्मा न प्रकाशते। दृश्यते त्वग्रयया बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभिः।।” मन आ इन्द्रियके नियन्त्रणमे रखबाक विधिके व्याख्या करैत उपनिषदमें कहलगेल अछि जे सबसँ पहिने स्थूल इन्द्रियके सूक्ष्म मनमें विलय करबाक चाही आ तखन मनके सूक्ष्म बुद्धि में लीन करबाक चाही। अपन बुद्धिके सुक्ष्म तत्त्वमें केन्द्रित क’ अन्तमे सुक्ष्म तत्त्वके शान्तिपूर्ण आत्मामें। “यच्छेद्वं मनसि प्रज्ञास्तद्यछेज्जनात्मणि। ज्ञानमानि महती

नियचेत्तद्यचेचन्त आत्मनी।।” स्थूलसे सूक्ष्ममे जेबाक सलाह द’क’ कठोपनिषद शारीरिक आ आध्यात्मिक योगके माध्यमसे ब्रह्मक प्राप्तिक व्याख्या करैत अछि।

कठोपनिषदमे बेर-बेर कहल गेल अछि जे जँ एहि संसारमे रहैत मनुक्खक शरीरक अवनति सँ पहिने ब्रह्मज्ञात होथि तखन ठीक अछि, अन्यथा मनुष्य जन्म-मरणक चक्रमे भिन्न-भिन्न अवस्थाक प्राप्ति करैत अछि। “इह चेदशाकद बोधुन प्रक्षारिरास्य विस्रसः। ततः सर्गेशु लोकेशु शारिरत्वय कल्पते।” एहि सँ स्पष्ट गोइत अछि जे कठोपनिषद रहस्यपूर्ण अछि। यमपञ्चक कठोपनिषद्क एहि रहस्यके उद्घाटित करैत अछि।

यमपञ्चक सूर्य दक्षिणायन रहैत, शरद् ऋतु मे पडैत अछि। वर्षक एहि समय, सूर्य जखन तुला राशिमें रहैत अछि, मनुष्यक दशा सूर्यक दशा जहिना कमजोर रहैत अछि। सूर्य तुला राशिमे कमजोर रहैत, यमपञ्चक पर्व पडैछ, जे मृत्युक देवी-देवता जेना काली, यम, चित्रगुप्तक सन्निकट रहैछ, तेहन समयक निर्धारित हेनाइ, कि एकरा कि एकेटा सन्दर्भमें देखल जा’ सकैत अछि?

निश्चित रूपसँ, सूर्यक तुला राशिमें कमजोर समय आ यमपञ्चक पर्वक समयकेँ एकहि सन्दर्भमे देखल जा’ सकैत अछि। दुनु घटना जीवन आ मृत्युक चक्र आ सन्तुलनक विचारके दर्शावैत अछि। सूर्यकेँ जीवन, शक्ति आ आत्माके कारक मानल जाइत अछि। जखन ई अपन निच राशि तुलामे रहैत अछि तखन एकर प्रभाव कमजोर भ’जाइत अछि। ई कमजोर स्थिति जीवनक अन्त आ मृत्युक देवता यमसँ सम्नन्धित पावनिक समयसँ मेल खाइत अछि।

कार्तिक अमावस्याके चन्द्रमा सेहो अपन कमजोर स्थितिमें रहैत अछि। सूर्यके कमजोर आ चन्द्रमा अस्त भेलासँ वर्षक घोर अन्हार राति होइत अछि। तैँ एकरा कालरात्रिक संज्ञा देलगेल अछि। वर्षके चारि कालरात्री (चारु नवरात्राक अष्टमी) मे कार्तिक अमावस्या घनघोर अन्हारक राति होइत अछि। जहिना बाहर अन्हार; रबिना भित्र अन्हार। एहि अन्हारकेँ प्रकाश पर्व (दीपावली)मे अनुवाद करवाक सन्दर्भ इएह छैक। मुदा, लोक बाहर दीप बारिअबैत अछि आ भितर अन्हारे रहिजाइत अछि। किओ एकर रहस्य नहिं बुझिपबैत छैक।

सूर्यक कमजोर स्थिति आन्तरिक चिन्तन आ आध्यात्मिक यात्राक समय मानल जाइत अछि। यमपञ्चक इएह अवसर प्रदान करैत अछि। लोक मृत्युक देवी-देवताक पूजा कैर अपन जीवनक कर्म आ मृत्युक पारके जीवनपर विचार करैत अछि। ई बाहरी दिखावाके बदला आन्तरिक स्थितिपर ध्यान केन्द्रित करबाक समय छैक। यमपञ्चकक एक पौराणिक कथानुसार, यमराज एहि पाँच दिन मृत्युलोकसे दूर अपन बहिन यमुनाके घर रहैत छथि। तैँ अकाल मृत्युक भय कम भ’जाइत छैक। सूर्यके कमजोर अवस्थाक समय यमराजक मृत्युलोकसँ दूर हेनाइ, एक प्रकार के सन्तुलनक प्रतीति एहि कथासँ होइत अछि। एहि निर्भिकताक अवसरके यमपञ्चकक सार प्राप्त कर’मे लगेबाक चाही।

यमपञ्चकमे काग, श्वान, गौ, आदि पूजाक प्रतीकात्मक अर्थ छैक, जे प्रकृतिके साथ मानवीय सम्बन्ध आ अन्य जीवप्रतिके सम्मान प्रकट करैत अछि। मुदा ई सब यमपञ्चकक हिस्सा छैक। काग मृत्गामी मनुष्यकेँ समयपर सचेत करादैत अछि। श्वान अन्त समयक सँगी आ धन्वन्तरी संरक्षक होइत अछि। गौ वैतरनी पार करवैत अछि। गो सेवासे सेहत श्रम आ दूधपान दुनु कारणसँ रहैत अछि। गाईके एक दिन लाडप्यार क’लेलासे आत्मज्ञान प्राप्त नहिं भ’सकैत अछि।

यमपञ्चकमें चित्रगुप्त पूजा सम्मिलित करबाक कारण की भ’सकैत अछि। चित्रगुप्त, जे मुख्य रूपसँ यमराजके सहायक छथि आ व्यक्तिके कर्मक हिसाब-किताब रखैत छथि। पौराणिक कथानुसार, सृष्टिकर्ता ब्रह्माद्वारा चित्रगुप्तके मनुष्यक जन्म आ मृत्युके बीच कएलगेल निक आ खराब कर्मक लेखा राखक कार्य सौंपल गेल अछि। यमराज ताहि लेखाक आधारपर न्याय करैत छथि।

प्रकृति मनुष्यके चेतन प्राणीके रूपमें देखै छै, ई मानवीय धारणा छै। प्रकृतिमे निजी चेतना वा नियतक अभाव होइत छैक। ई लोकनिक कर्मकेँ निजी रूपसँ नहिं देखैत अछि आ नहिये महसूस करैत अछि। मुदा ओ प्रत्येक घटनापर प्रतिक्रिया दैत अछि। एकर मतलब छै कि मनुष्यक हरेक कार्य प्रकृतिके लेल एक घटना छै, आर ओ हरेक घटनाके प्रतिक्रियात्मक परिणाम दैत अछि, जे अन्ततः प्रकृतिके सन्तुलनके प्रभावित करैत अछि। प्रकृतिद्वारा होबयबाला एहन प्रत्येक कार्य चित्रगुप्तक कार्य छैक। एहन क्रियाकलापके एकेक एकाइके सतहपर वा सम्पूर्णतामे देखल जा’सकैत अछि।
यमपञ्चक, जेना कि नाम सँ बुझना जाइत अछि, यम आ मृत्यु सँ जुड़ल पावनि अछि। एहि यमके सँग हुनक सहायक चित्रगुप्तके पूजा करब स्वाभाविक अछि। चित्रगुप्तकेर पूजाक तात्पर्य लोक अपन कर्मकेर मूल्याङ्कन करथि आ सद्कर्मके प्रण करथि।

सनातन दर्शनअनुसार, पाप कर्म आ पुण्य कर्म दू तरहके कर्म होइत अछि, जनिका सम्बन्ध व्यक्तिके जीवनके नैतिक आचरणसँ छैक। ई दुनु कर्मफल सिद्धान्तसँ जुडल अछि, एहि सिद्धान्तक अनुसारे प्रत्येक कर्मक फल निर्धारित होइत अछि।

कुसंस्कारी, अनैतिक, अधर्मी कृत्य वा जे केलासे दोसरके हानि होय, तेहन कार्य पाप कर्म होइत अछि। पापजन्य कर्मक उत्पत्ति दूषित विचारसँ होइत अछि, जे व्यक्तिके दुख आ कष्टमें पहुँचा दैत अछि।

कोनो जीवके शारीरिक वा मानसिक हिंसा, कष्ट पैदा करना, मिथ्या आर छलके सहारा लेना, दोसरके सम्पत्ति चोरी करना, अनैतिक सम्बन्धमे संलग्न होना, दोसरके निन्दा करना, लोभ, काम, क्रोध, अधर्म आ अनाचार ई सब पापजनित कार्य अछि। पाप, जेना कानूनके उल्लंघन होइत अछि तहिना मानल जाय, जेकर कारण दण्डक भागी होब’ पडैत छैक।

पुण्य कर्म एहन कार्य छैक जे नैतिक, धर्मी आ दोसरके कल्याणकारी होय। ई व्यक्तिके मनके पवित्र करैत सुख एवं शान्ति प्रदान करैत अछि। धर्मक पालन, परोपकार, दान, दया, अहिंसा, सत्य, निस्वार्थ सेवा भाव आदि पुण्यक कार्य थिक।

पाप आ पुण्यके बीच मूल अन्तर ई छैक जे पाप कर्म दोसरके हानि पहुँचावक लेल होइत छैक आ पुण्य कर्म दोसरके कल्याण करलेल। पापक आधार अधर्म, अनैतिकता आ स्वार्थ होइत छैक, जखन पुण्यक आधार धर्म, नैतिकता आ परोपकार। पापक फल दु:ख आ कष्ट होइत छैक, जखन कि पुण्यक फल सुख आ शान्ति।

कर्मक उत्पत्तिके ‘कारक भाव’ ओहि कर्मके पाप वा पुण्य बनाबैत अछि। केवल दिखावालेल कएल पुण्य-कर्मसँ वास्तविक पुण्यक प्राप्ति नहीं होइत अछि। मुदा, गम्भीरतापूर्वक बुझ’बाला बात ई छै जे दुनु प्रकारको कर्म व्यक्तिके जन्म-मृत्यु चक्रमे बन्हने रहैछै। परञ्च निष्काम कर्म, अर्थात् फलके इच्छा बिना कएलगेल कर्म, पाप वा पुण्य दुनुप्रकारक बन्हनसँ उन्मुक्त रहैत छैक।

मनुष्यके अपन कर्मक लेखा-जोखा स्वयं करबाक चाही। जकर विवेचन आत्मनिरीक्षण आ आत्म-मूल्याङ्कन द्वारा होइत छैक। ई प्रक्रिया व्यक्तिके विचार आ कार्यकप्रति जागरूक बनाबैत अछि, जाहिसँ ओ अपन जीवनके निष्कलङ्क बनासकय।

जेना चित्रगुप्तके हम प्रकृतिक समस्त घटनाके लेखापरीक्षक मानैत छिएनि, तहिना चित्रगुप्त सेहो सबहक हृदयमे निवास करैत छथि आ सबहक कर्मके परीक्षण करैत छथि। मुदा, अपन अज्ञानताक कारणेँ लोक अपन-अपन हृदयमे ‘गुप्त’ रूपमे विराजमान ‘चित्र’ अर्थात् ‘चित्रगुप्त’के बुझबामे असफल रहैत अछि। यदि लोक यमके उपदेशके रहस्य बुझय त जीवन समृद्ध भ’सकैत अछि।

मनुष्य अपन उत्तरदायित्व आ कर्तव्यक निर्वहन करैत ब्रह्म विद्या प्राप्त करबाक लेल निरन्तर प्रयत्नशील रहए इएह यमपञ्चकक प्रथा आ प्रार्थना अछि। कठोपनिषद कहैत अछि- आत्म साक्षात्कारक मार्ग अत्यन्त कठिन अछि, तैँ तत्वदर्शी महापुरुष एहि मार्गपर चलनाके छुरीके धारपर चलना बतबैत छथि। “उतिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।”

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